कल कैसा होगा।। सोचो ये कल कैसा होगा, जैसा सोचा वैसा होगा? मैं कलम धार सच कहता हूं,, सुन लो कल क्या पैठा होगा। संस्कार सँजोया कब तुमने, करनी पर रोया कब तुमने। निर्बल असहाय अमानव सा, तू हाथ धरे बैठा होगा। पत्थर बन पत्थर पूज रहा, जब समय पड़ा तू मूक रहा। अंधे बहरे की क्या दुनिया, जलती रस्सी ऐंठा होगा। सूरज लाली ले आयेगा, पर सुबह नहीं तू पायेगा। लाली होगी हर ओर मगर, शोणित धरती फैला होगा। ये नर क्यूँ आज नराधम है, चहुँओर घिरा क्यूँ ये तम है। कण कण जो पाप समाया है, शापित मानव पैदा होगा। अंधी जो दौड़ रही दुनिया, लक्ष्मी सिरमौर रही दुनिया। रिश्ते बाज़ार बिकेंगे फिर, अपनापन बस पैसा होगा। पाना ही है जो एक ललक, धरती पायी पा लिया फ़लक। परिवार धरा रह जायेगा, जीवन खाली थैला होगा। फिर रात कथा दुहरायेगी, पौरुषता दम्भ दिखायेगी, दरबार लगाये जायेंगे, आँचल फिर से मैला होगा। हर एक अक्षर काला होगा, बल ने सच को ढाला होगा। तलवार कलम को जीतेगी, है सत्य सुनो ऐसा होगा। सब सोच बहुत घबराता हूँ, निःशब्द खड़ा निज पाता हूँ। है हाथ कलम भी काँप रही, जाने वो पल कैसा होगा। ©रजनीश "स्वछन्द" ©रजनीश "स्वच्छंद" #काव्ययात्रा_रजनीश