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हर बार ही खुद को आजमाता हूं मैं सिर्फ़ इसलिए आवाज़

हर बार ही खुद को आजमाता हूं मैं
सिर्फ़ इसलिए आवाज़ लगाता हूं मैं 
चारो तरफ वैसे तो शोर बहुत है
लेकिन ख़ुद को अकेला ही पाता हूं मैं
हर बार ही.......
भरोसे का सफ़र खूब खेल खेलता है
और थककर अक्सर बैठ जाता हूं मैं
कभी कभी झांकता हूं अतीत के गर्भ में
और खूब ही खुद को समझाता हूं मैं
हर बार ही....….
अपने ही भावों में गोल गोल घूमता हूं
और छुपकर अश्कों को पोंछ पाता हूं मैं
आखिर मेरी तलाश है क्या सोचता हूं
"सूर्य" ख़ुद को कितना सताता हूं मैं
हर बार ही.......

©R K Mishra " सूर्य "
  #मंथन  Neel Rama Goswami Umme Habiba Puja Udeshi PRIYANK SHRIVASTAVA 'ARMAAN'