ये वहम है मेरा या तुमने भी सुना है क्या कम्बख़त ज़िन्दगी वाक़ई में जुआँ है क्या सारा शहर रंजिशों की आग से रौशन है देख मेरे आस्ताँ में भी कुछ धुआँ है क्या मैं क़ैद हूँ ख़ुद में ही छुपा हूँ या मर गया मुझे नदामत रही माज़ी तुझे गुमाँ है क्या तेरी नज़रें ही मुंकिर हैं तेरे अल्फ़ाज़ों की रिन्द ज़हन-ए-क़ासिद में कोई राज़ निहाँ है क्या ये कैसा शोर है जो सुनाई नहीं देता ग़ाफ़िल खामोशियों ने सन्नाटों से कुछ कहा है क्या मंसूबा-ए-गुफ़्तार मेरी समझ से परे है साक़ी तेरी ज़ुबाँ के भीतर एक और ज़ुबाँ है क्या तेरी मिज़्गाँ पे ये मोती जचते नहीं अहबाब सहरा को क़ुल्ज़ुम से अब इश्क़ हुआ है क्या इज़्तिराब पर इख़्तियार नहीं ग़र वज़ह क्या है दिल-ए-नादान का तेरे कोई और मकाँ है क्या मेरे हालात पर तसल्ली दी लानत है तुमपर तुम्हें किसी ग़ैर ने मर्ज़ी बग़ैर छुआ है क्या ख़याल ग़र वजूद की हद में रहें तो क्या बात 'क़ासिद' मैं फ़रिश्ता नहीं हूँ ग़र तो तू ख़ुदा है क्या #Gazal #YQdidi #Love #Life #Truth #Hope #Wish #God आस्ताँ - चौखट या दहलीज़ - Doorpost नदामत - पछतावा - Regret माज़ी - अतीत - Past मुंकिर - जो मना कर दे - One who denies रिन्द - शराबी - drunkard ज़हन-ए-क़ासिद - दूत का हृदय - Heart of the messenger