बाज़ार में घूमते घूमते जब मेरी नज़र उस खिलौने पर पड़ी, खिलौने , जहाँ तक याद पड़ता है , शायद हमने खिलौने नहीं खेले , हाँ , वास्तव में लड़की हूँ, पर मुझे कभी गुड़िया गुड्डो का शौख न था , हमने कभी अपनी गुड़िया की शादी नहीं की , या शायद .... बचपन से ही शादी शब्द से ही खौफ था, या कोई अंजना सा डर , मेरी आँखों के सामने जैसे कोई चलचित्र सा चल पड़ता है , वो दहेज़ लोभी , वो आग की लपटों में झुलसती लड़की , वो दर्द , वो चीखे , कानों में गूंजती वो कराहने की आवाज , आंसू और समाज की बनाई कुरीतियों से बना , बेटियों को डसता हुआ सांप | #KHILAUNE #KHAUF #DAHEJ