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भ्रमर गीत मे क्रदन कैसा पुष्प लता बिन उपवन जैसा,

भ्रमर गीत मे क्रदन कैसा
पुष्प लता बिन उपवन जैसा,
बसंत मे मन द्रवित कलियों का
नव कोपलो का मर्दन जैसा,
चंचरीक न अब अकुलाता
अग्रह बन क्यों गूंजता,
उपालंभ कोई मेरी समझाता
मेरी तृष्णा क्यों न मिटाता ,
भ्रमर गीत मे क्रदन कैसा ....
नीरज वर्मा "नीर "

©Neeraj Neer
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