बदल सा गया हूं यूं ही कुछ तेरे लौट के आने का इंतजार करते करते बहुत कुछ सीखा मैंने तेरे पास होकर भी तुझसे दूर रहकर हर रात जो तूझसे बातों का सिलसिला था अब शायद इस डर से मेरे पास नहीं है कि कहीं फिर से मुझे तेरे बिना रात भर अकेले ना रोना पड़े बन्द कर दिया है मैंने हर वक्त का तुझे कॉल या मैसेज करना सोच जाता हूं कि कहीं फिर से दखल ना पड़ जाए व्यस्ततम दिनचर्या में एक पहर का कुछ वक्त मांगता था तब तुमसे तुम्हारे खयालों को जानने का पर शायद पहर भर का वो समय तुम्हें शहर से अलग कर देता हां शायद मैं खुद को बदल रहा हूं धूल के इस तूफान से बचने की कवायद में।