रात हम मैक़दे में जा निकले घर का घर शहर मैं भटकता रहा उसके दिल में तो कोई मैल न था मैं खुद जाने क्यूँ झिझकता रहा मुट्ठियाँ मेरी सख्त होती गयी जितना दमन कोई भटकता रहा मीर को पढते पढते सोया था रात भर नींद में सिसकता रहा राहत न मिली शहर मेँ ही भटकता रहा और शहरी हो गया #Nojoto