३ शायद ही मिले तुमसा कोई किसी और को क्योंकि मैंने देखा है लाखों प्रेमियों को अपने मंजिल से बिल्कुल अनजान कैसे राहों में ही भटक जाते हैं जैसे मानो एक दूसरे को ही समझा रहे हो मैं ही तो हु तुम्हारी मंजिल इधर-उधर क्यों जा रहे हो और एक दूसरे में ही ,ऐसे उलझ जाते है मानो एक दूसरे को ही सीखा रहे हो मुझे छोड़ कहा जाओगे जहाँ जाओगे पछताओगे और बीच राहों में ही ,ऐसे उलझ जाते है ना खुद सुलझ पाते हैं ना दूसरे को सुलझने देते है और अन्त में एक दूसरे को गहराई तक मापते है फिर मूल रूप से खुद को नष्ट कर देते हैं । एक वक़्त था जब मै भी उलझ गया था बीच राह में मुझे भी दूसरों की तरह तुम्हारे सिवा कुछ भी नज़र नही आता था याद है वो पल मुझे आज भी कैसे तुमने मेरे हाथों को थाम बीच राह में भटकने से रोका था मैं बार-बार भटकता ,और तुम बार -बार मेरा हाथ थाम मुझे मेरी मंजिल के राहो में मेरा धयान केंद्रित कराती और तुम हार तब तक नही मानी जब तक मुझे , मेरा मंज़िल नही मिली और तुम आज भी मुझे इतने में नही देखना चाहती मुझे आज से , कल और बेहतर देखना चाहती हो और मै तुम्हारे सारे सपने को पूरा करूँगा तुम मुझे जहा देखना चाहती हो , वहा जरूर जाऊंगा तुम्हरा साथ रहे बस, ये दुनिया को जीत जाऊंगा और आज मेरे पास सबकुछ है शायद ये सब तुम्हारे बिना मुमकिन नहीं था तुम थी तभी मंज़िल तक पहुँच पाया वरना में भी ,बीच राह में उलझ कर खुद को नष्ट कर देता । ,✍️ बद्रीनाथ #yourlove #mrbnp#कविता ३ शायद ही मिले तुमसा कोई किसी और को क्योंकि