नये-नये हथकण्डे रचते छद्म रूप अपनाते, असुर बड़े मायावी ठहरे माया में उलझाते, करे स्वांग भ्रम जाल बिछाए जादूगर के जैसा, बने मदारी स्वयं जमूरा दर्शक गण बनजाते, राजनीति का खेल बड़ा ही उच्च कोटि का मेला, नया पैंतरा दिखला कर सब जनता को भटकाते, कुनवों में बँटकर होती कमज़ोर सियासी ताक़त, गुणवत्ता शूली चढ़ जाती नेता रबरी खाते, तनिक स्वार्थ में बिक जाते मज़लूम गुलामी करता, रोज़ प्रदर्शन, नारेबाजी, गुड़ खाकर गुण गाते, आज खड़ी है दुनिया फिर से युद्ध क्षेत्र में आकर, धर्म के ठेकेदार आमजन को हर पल उकसाते, शांति ज़रूरी है 'गुंजन' इस वक़्त सभी के दिल में, आत्मज्ञान अपनाने वाले संकट से बच जाते, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #संकट से बच जाते#