Nojoto: Largest Storytelling Platform

इसे नियति कहे या मजबूरी मगर ये सच तो है न कभी सोचा

इसे नियति कहे या मजबूरी
मगर ये सच तो है न
कभी सोचा है इनके बारे में
कैसे चूल्हा चलता होगा
हमे क्या पड़ी है मेरा चलता है न
ये इनका पुस्तैनी पेशा है
बाप दादा परदादा करते आते है
सालो भर नही होता काम
दाम के नाम पर  5-10 रुपये
पेड़ भी दूसरे का हैं
चिलचिलाती धूप में जोखिम भरा
कहते आपके लिए होगा
मेरे लिए कोई जोखिम नही होता
और फिर मर भी जाये तो क्या
घर तो भीख मांगकर ही चलता है
कौन सा मैं कमाऊ हूं
ये सबको पता है कि मैं गिनती का
ऐसी जिंदगी से न ही भली

©ranjit Kumar rathour
  जिंदगी न ही भली

जिंदगी न ही भली #कविता

167 Views