चिता को क्या पता किसी के वेदना की, उस शैय्या से पूछो कितना भार लिए जल रहा है, राख हो कर भी नहीं है शांत जो, पानी पा कर भी धुआं सा उठ रहा है, अंश को क्या करेगा तू बहाकर, दंश तो फिर भी मुझ पर ही पड़ा है, लाचार सा यूं ही किनारा तक रहा हूं, कुछ नहीं बस घाटों का पानी चख रहा हूं, अशांत मन को बहला रहा हूं, अपने आप किनारे लगा रहा हूँ अंश का दंश