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एक दिन क्या काफी है मां के लिए हर रोज तुम्हारे लि

एक दिन क्या काफी है मां के लिए
 हर रोज तुम्हारे लिए आंखों में ख्वाब लेकर सोना
 और हर सुबह तुम्हारे लिए उम्मीद की रोशनी के साथ जागना तुम्हारे सपनों के लिए खुद के सपनों को कुर्बान कर देना 
क्या इतना आसान है 
उस मां को सिर्फ 1 दिन में बयां कर देना

©pari dixit
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