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बहता हुआ ये लम्हा कुछ कहता है तू सुन ज़रा, मंज़िल

बहता हुआ ये लम्हा
कुछ कहता है तू सुन ज़रा,
मंज़िल को पाने की आस में
एक प्यारा-सा सपना तू बुन ज़रा,
ये लम्हा जो है बीत गया
फिर ना कभी लौट पाएगा,
सारी बंदिशों को तोड़ कर
पंख फैलाए खुले आसमां में
हर बाधा को कर पार
बेफिक्र होकर तू उड़ जरा।

©Sonal Panwar
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