Nojoto: Largest Storytelling Platform

कच्चे मन की वो सांवली पगडंडियां सांझ ढले आती है रो

कच्चे मन की
वो सांवली पगडंडियां
सांझ ढले आती है रोज
देह के गलियारे तक
मैं,दरवाजे नहीं खोलता।
मुझे मालूम है
उम्र के इस मंझले पहर में
कोई साथ नही होगा।
फिर
सपनों को परवाज़ क्यों  दें?
'कल ' तो दे दिया
अब , 'आज़ ' क्यों दें?

©डॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ)
  #वो सांवली पगडंडियां