..आखिर क्यों इंसान देता है दगा आखिर क्यों इंसान भूल गया बफा आखिर क्यों मिट गई मानवता आखिर क्यों टूटता विश्वास जीवन का कितनों को छोड़ जाता मझधार में कितनों का दिल कुचलता निज स्वार्थ में ऐ मानव तेरा रूप बदला या फिर नकाब हटा प्रेम, न्याय, परोपकार, दया जो कभी तेरा अंग था कहाँ गिरा यह अंश तेरा कहाँ भटकी मानवता हो रहा अंधकार गहरा सो रहा ईमान तेरा कैसा हुआ जीवन तेरा खोखला हुआ शरीर नया जो स्वार्थ से पूर्णतया भरा। पारुल शर्मा ..आखिर क्यों इंसान देता है दगा आखिर क्यों इंसान भूल गया बफा आखिर क्यों मिट गई मानवता आखिर क्यों टूटता विश्वास जीवन का कितनों को छोड़ जाता मझधार में कितनों का दिल कुचलता निज स्वार्थ में ऐ मानव तेरा रूप बदला या फिर नकाब हटा