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दँगा - भाग 2 अमन-चैन लौट आया, लौट आई और एक जाँच न

दँगा - भाग 2

अमन-चैन लौट आया, लौट आई और एक जाँच
निश्चिन्त हुआ हर एक, साँच को है अब क्या आँच
पूरसूकून मैं भी लौटा अपने शहर बिलकुल अज़नबी की तरह
माकूल नज़र से तौला हर किसी को सच्चे मज़हबी की तरह

रिक्शा वाले से किराया तय ठहराने को ज्यूं ही आगे बढ़ा
देखता हूँ की वो मेरी ही तरफ़ आ रहा है चढ़ा
मैं घबराया, रिक्शा वाला मुस्कराया, हाथ सलाम में उठाये हुए
मैं तो और भी ठिठक गया अपनी पोटली बगल में दबाये हुए
मेरी आँखों में झांकते अजनबीपन ने रिक्शा चालक की मुस्कान छीन ली
तब जाकर मेरे शक्की मन ने चैन की साँस ली
रास्ते भर मैं उचक उचक कर कूचे गली मोहल्लों के निशान तलाशता रहा
रस्ते में ड्यूटी पर तैनात पुलिसियों से रिक्शा चालक की निशानदेही करवाता रहा
मुकाम आने तक अपने मन को खुद ही ढ़ाणढ़स बँधाता रहा
रियर व्यू मिरर में रिक्शा वाले से खुद ही नज़रें चुराता रहा
ना जाने क्यों मुझे रिक्शे वाले की नीयत पर शक हो रहा था
मुझे देख कर उसकी आँखों में जो उभरी थी चमक, उस पर तो और भी शक हो रहा था
या खुदा, हे भगवन किसी तरह नैय्या पार लगादे
इस काल समान रिक्शा चालाक से निज़ात दिलादे
कि तभी रिक्शा रुकी, मैं सहमा सहमा काँप गया
रिक्शा चालक शायद मेरे मन का डर भांप गया
वह बोला भाई साहब आपने मुझे पहचाना नहीं?
भूल गए? मैं रहमत हूँ, क्या अब भी मुझे जाना नहीं
मैं खिसियानी हँसी हँस कर रह गया
फिर से ज़माने की रौ में बह गया

अब मैं फिर से शेर की तरह दनदनाता फिरता हूँ
दँगा तूफ़ान की क्या मजाल किसी से नहीं डरता हूँ
क्या करूँ इन्सान हूँ, अत: फिर से किसी बलवे की बाट जोह रहा हूँ
अपना तमाम सामान बाँधे, सिरहाने रखकर सो रहा हूँ
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइ

©Anand Kumar Ashodhiya #दंगाभाग2 #दंगा #हिन्दीकविता 

#MereKhayaal
दँगा - भाग 2

अमन-चैन लौट आया, लौट आई और एक जाँच
निश्चिन्त हुआ हर एक, साँच को है अब क्या आँच
पूरसूकून मैं भी लौटा अपने शहर बिलकुल अज़नबी की तरह
माकूल नज़र से तौला हर किसी को सच्चे मज़हबी की तरह

रिक्शा वाले से किराया तय ठहराने को ज्यूं ही आगे बढ़ा
देखता हूँ की वो मेरी ही तरफ़ आ रहा है चढ़ा
मैं घबराया, रिक्शा वाला मुस्कराया, हाथ सलाम में उठाये हुए
मैं तो और भी ठिठक गया अपनी पोटली बगल में दबाये हुए
मेरी आँखों में झांकते अजनबीपन ने रिक्शा चालक की मुस्कान छीन ली
तब जाकर मेरे शक्की मन ने चैन की साँस ली
रास्ते भर मैं उचक उचक कर कूचे गली मोहल्लों के निशान तलाशता रहा
रस्ते में ड्यूटी पर तैनात पुलिसियों से रिक्शा चालक की निशानदेही करवाता रहा
मुकाम आने तक अपने मन को खुद ही ढ़ाणढ़स बँधाता रहा
रियर व्यू मिरर में रिक्शा वाले से खुद ही नज़रें चुराता रहा
ना जाने क्यों मुझे रिक्शे वाले की नीयत पर शक हो रहा था
मुझे देख कर उसकी आँखों में जो उभरी थी चमक, उस पर तो और भी शक हो रहा था
या खुदा, हे भगवन किसी तरह नैय्या पार लगादे
इस काल समान रिक्शा चालाक से निज़ात दिलादे
कि तभी रिक्शा रुकी, मैं सहमा सहमा काँप गया
रिक्शा चालक शायद मेरे मन का डर भांप गया
वह बोला भाई साहब आपने मुझे पहचाना नहीं?
भूल गए? मैं रहमत हूँ, क्या अब भी मुझे जाना नहीं
मैं खिसियानी हँसी हँस कर रह गया
फिर से ज़माने की रौ में बह गया

अब मैं फिर से शेर की तरह दनदनाता फिरता हूँ
दँगा तूफ़ान की क्या मजाल किसी से नहीं डरता हूँ
क्या करूँ इन्सान हूँ, अत: फिर से किसी बलवे की बाट जोह रहा हूँ
अपना तमाम सामान बाँधे, सिरहाने रखकर सो रहा हूँ
रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइ

©Anand Kumar Ashodhiya #दंगाभाग2 #दंगा #हिन्दीकविता 

#MereKhayaal