Travel मंज़िल हमें, हम रास्तों को आज़माते हैं, मुसीबतों को ढूंढकर जा टकराते हैं, नासमझ हैं वो काँटे जो हमारी राह में बिछे हैं, उन्हें देख, हम बस मुस्कुराते हैं। सफ़र आसां हो तो ख़ाक मज़ा है यारों, आसां ज़िंदगी तो ख़ता है प्यारो, तो क्या फ़लक तक जो पहुँच वो टूट जाते हैं, आसमां से टूटकर ही सितारें झिलमिलाते हैं। रविकुमार... मंज़िल हमें, हम रास्तों को आज़माते हैं, मुसीबतों को ढूंढकर जा टकराते हैं, नासमझ हैं वो काँटे जो हमारी राह में बिछे हैं, उन्हें देख, हम बस मुस्कुराते हैं। सफ़र आसां हो तो ख़ाक मज़ा है यारों, आसां ज़िंदगी तो ख़ता है प्यारो, तो क्या फ़लक तक जो पहुँच वो टूट जाते हैं,