नजरें मिलाओ खोलो जुबां को क्या चाहिए। अब तो ये जां ही बची है क्या जां चाहिए। ये मालूम तो मुझको भी पड़ने लगा है कि मुझसे तुझे अब फसला चाहिए। यूं मेरे बसंतो को भादों बनाकर हर मौसम तुम्हें खुशनुमा चाहिए । कर भी क्या लूंगा मैं चाहकर भी तेरा बुजदिली के लिए भी हौशला चाहिए। तुझे " दीप" की तो आरजू ही नहीं , लगता है यारां तुझे अब कुछ नया चाहिए। - कवि कुलदीप बैंसला ©Kuldeep Bainsla #kavikuldeepbainsla #kavikuldeepbansal #love #Dhokha #Dark