क्या कभी लौट पायेगा वो प्रवासी जल मरुस्थलो मे? कैसे विस्मृत कर सकता है आज वो मरुस्थल कि. वो भी कभी समुन्द्र का अंश था और उसमे भी. लहरे कभी ठाठे मारा करती थी लेकिन वक़्त ने करवट ली और उसके जल क़ो सूरज ने वाशपिकृत करके उसे मरुस्थल मे बदल दिया आज वो सन्नाटो मे चीख चीख कर अपनी व्यथा प्रकट करता है. और आज भी वो तरलता के स्वप्न उन वीरान रातो मे देखा करता है ©Parasram Arora मरुस्थल की व्यथा