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खून इंसानियत का खून इंसानियत का ही कर रहे हैं हम

खून इंसानियत का

खून इंसानियत का ही कर रहे हैं हम लोग,
इंसानियत कहां गई फिर कह रहे हम लोग।
जब खुद से ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी,
फिर क्यों पीड़ा से अब चिल्ला रहे हम लोग।

मुसीबत में देख उसे अभी भाग रहे हम लोग,
वक्त नहीं हमारे पास यही कह रहे हम लोग।
कैसा अब ये स्वार्थी दौर चल रहा है देखो तो,
खुद की बारी पर क्यों दुहाई दे रहे हम लोग।

अपने ही परिवार को कुचल रहे हैं हम लोग,
आए दिन अखबार में ही पढ़ते हैं हम लोग।
अपराधों का दौर ही अब चल पड़ा है दोस्त,
उन्हीं अपराधों पर पग रख चुके हम लोग।

कुरीतियों ने मुँह को फाड़ा वहीं बढ़ रहे हम लोग,
दूसरों पर व्यंग्य कसते खुद बहक रहे हम लोग।
आदि न अंत हमारी समस्याओं का कभी होगा,
इसलिए खून इंसानियत का कर रहे हम लोग।

खून इंसानियत का ही कर रहे हैं हम लोग,
इंसानियत कहां गई फिर कह रहे हम लोग।
जब खुद से ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी,
फिर क्यों पीड़ा से अब चिल्ला रहे हम लोग।
..................................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit #खून_इंसानियत_का

खून इंसानियत का

खून इंसानियत का ही कर रहे हैं हम लोग,
इंसानियत कहां गई फिर कह रहे हम लोग।
जब खुद से ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी,
फिर क्यों पीड़ा से अब चिल्ला रहे हम लोग।
खून इंसानियत का

खून इंसानियत का ही कर रहे हैं हम लोग,
इंसानियत कहां गई फिर कह रहे हम लोग।
जब खुद से ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी,
फिर क्यों पीड़ा से अब चिल्ला रहे हम लोग।

मुसीबत में देख उसे अभी भाग रहे हम लोग,
वक्त नहीं हमारे पास यही कह रहे हम लोग।
कैसा अब ये स्वार्थी दौर चल रहा है देखो तो,
खुद की बारी पर क्यों दुहाई दे रहे हम लोग।

अपने ही परिवार को कुचल रहे हैं हम लोग,
आए दिन अखबार में ही पढ़ते हैं हम लोग।
अपराधों का दौर ही अब चल पड़ा है दोस्त,
उन्हीं अपराधों पर पग रख चुके हम लोग।

कुरीतियों ने मुँह को फाड़ा वहीं बढ़ रहे हम लोग,
दूसरों पर व्यंग्य कसते खुद बहक रहे हम लोग।
आदि न अंत हमारी समस्याओं का कभी होगा,
इसलिए खून इंसानियत का कर रहे हम लोग।

खून इंसानियत का ही कर रहे हैं हम लोग,
इंसानियत कहां गई फिर कह रहे हम लोग।
जब खुद से ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी,
फिर क्यों पीड़ा से अब चिल्ला रहे हम लोग।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit #खून_इंसानियत_का

खून इंसानियत का

खून इंसानियत का ही कर रहे हैं हम लोग,
इंसानियत कहां गई फिर कह रहे हम लोग।
जब खुद से ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी,
फिर क्यों पीड़ा से अब चिल्ला रहे हम लोग।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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