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लिख तो दिया अपना दर्द पर कैसे उसे अपने ही हाथों

लिख तो दिया अपना दर्द 
पर कैसे उसे अपने ही 
हाथों दफ़नाया होगा |
दिल नही रूह भी काँपी होगी
जब उसने कहा-"कुछ करो "
बेबस, लाचार हाथों मे लेकर 
उसे सीने से लगाया होगा, 
आँख ही नहीं रूह भी 
तड़पी होगी ,
उसकी बुझती-सी 
आस को देखकर |
रब क्यों तू इतना निष्ठुर हो गया
अपने हाथों मे जिसे पाला, 
जिसने गोद मे आकर 
 जन्नतका अहसास करवाया |
उसे ही तुमने अपनी आगोश 
में ले लिया,
 एक माँ की गोद सुनी कर,
थोड़ा तो रहम तू भी कर लेता, 
उसके साथ जुड़ी जिंदगी पर |
कैसा दर्द, कैसी विरह तू दे गया,
अपने साथ खुशियों का 
जहाँ ही ले गया, 
लिखने वाले ने तकदीर को लिखा 
तो कम से कम उसे उसके हक
की जिंदगी  तो जीने देता रब |
रब किसी के घर में 
ऐसा दिन न उगाए, कि 
उसे उसके ही घर का चिराग बूझ जाए
बस! एक दुआ को ही कबुल
कर ले, रब उसे जीवन-मृत्यु
के क्रम से मुक्ति देकर
मोक्ष प्रदान करें,, |
लिख तो दिया अपना दर्द
पर! कैसे अपने हाथों से 
दफ़नाया होगा |
आँख ही नहीं रूह भी 
बहुत रोई होगी रूह भी रोई होगी
लिख तो दिया अपना दर्द 
पर कैसे उसे अपने ही 
हाथों दफ़नाया होगा |
दिल नही रूह भी काँपी होगी
जब उसने कहा-"कुछ करो "
बेबस, लाचार हाथों मे लेकर 
उसे सीने से लगाया होगा, 
आँख ही नहीं रूह भी 
तड़पी होगी ,
उसकी बुझती-सी 
आस को देखकर |
रब क्यों तू इतना निष्ठुर हो गया
अपने हाथों मे जिसे पाला, 
जिसने गोद मे आकर 
 जन्नतका अहसास करवाया |
उसे ही तुमने अपनी आगोश 
में ले लिया,
 एक माँ की गोद सुनी कर,
थोड़ा तो रहम तू भी कर लेता, 
उसके साथ जुड़ी जिंदगी पर |
कैसा दर्द, कैसी विरह तू दे गया,
अपने साथ खुशियों का 
जहाँ ही ले गया, 
लिखने वाले ने तकदीर को लिखा 
तो कम से कम उसे उसके हक
की जिंदगी  तो जीने देता रब |
रब किसी के घर में 
ऐसा दिन न उगाए, कि 
उसे उसके ही घर का चिराग बूझ जाए
बस! एक दुआ को ही कबुल
कर ले, रब उसे जीवन-मृत्यु
के क्रम से मुक्ति देकर
मोक्ष प्रदान करें,, |
लिख तो दिया अपना दर्द
पर! कैसे अपने हाथों से 
दफ़नाया होगा |
आँख ही नहीं रूह भी 
बहुत रोई होगी रूह भी रोई होगी