अँधियारी अमावस, और आँधियों की रात के बाद, सुबह सुहानी थी आज, मैं मौन स्थिर सी खड़ी, मन की मुँडेर पर, एकटक निहार रही थी, उस निकलते आस के सूरज को, प्रतिक्षा के आसमान की नीली चादर से, अँगड़ाई लेते हुए, रात बरसी नैनों की बारिश से, दिल की नदी में उफान था, दर्द की लहरें, खुशियों के शहरों और गलियों को, प्रेम के भवनों व अट्टालिकाओं को, समर्पण की सड़क एवं त्याग के चौराहों को, डुबो रही थी, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #उम्र_की_चिठ्ठी अँधियारी अमावस, और आँधियों की रात के बाद, सुबह सुहानी थी आज, मैं मौन स्थिर सी खड़ी,