उत्सुक मन कहता है: सर्द है मौसम बड़ा चल धूप सेकते हैं, लेते लेते चाय की चुस्कियां चल आंगन में बैठते हैं!! आलसी शरीर जवाब देता है: नहीं हुई भोर अभी चल पलंग में लेटते हैं, बाकी है रात अभी थोड़ा और सोते हैं, निराशात्मक हक़ीक़त में नहीं आना मुझे चल ख़्वाब देखते हैं! लम्हा-लम्हा नई होती हुई ज़िंदगी के लिए ख़्वाब भी नए-नए ज़रूरी होते हैं। ज़िंदगी हर लम्हा यही कह रही है। चल #ख़्वाबदेखतेहैं #collab करें #yqdidi के साथ। #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi