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अपने अस्तित्व को थोड़ी सी तो पहचान दे पूरी कविता क

अपने अस्तित्व को थोड़ी सी तो पहचान दे
पूरी कविता कैप्शन में है मृगतृष्णा को मारकर थोड़ा सा तो ज्ञान ले
 अपने अस्तित्व को थोड़ी सी तो पहचान दे
जाल है यह रूप का 
चित्र के स्वरूप का
मालिन जो मन है तेरा
 दादुर है यह कूप का
 दादुर नहीं है नभचर है तू अब ए मान ले
  अपने अस्तित्व को थोड़ी सी तो पहचान दे
अपने अस्तित्व को थोड़ी सी तो पहचान दे
पूरी कविता कैप्शन में है मृगतृष्णा को मारकर थोड़ा सा तो ज्ञान ले
 अपने अस्तित्व को थोड़ी सी तो पहचान दे
जाल है यह रूप का 
चित्र के स्वरूप का
मालिन जो मन है तेरा
 दादुर है यह कूप का
 दादुर नहीं है नभचर है तू अब ए मान ले
  अपने अस्तित्व को थोड़ी सी तो पहचान दे