हर माँ बंधक है अपने ही रसोईघर में बच्चो की बेड़ियौ में जकड़ी हुई ममत्व की ज़ज़ीरो से बंधी हुई चूल्हे के धुए का आचमन करती हुई वो माँ ईश्वरीय पर्याय क़ो सार्थक़ सिद्ध करती हुई... समर्पन्न की आँख से कर्म की गीता क़ो पड़ती हुई.. हर घर में देखी जा सकती है...... कोई नही जान सका आज तक उस माँ में इतनी स्फूर्ति इतनी त्वरा का घटक आया कहा से? ©Parasram Arora माँ.... ( ईश्वरीय पर्याय ).