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जिस रचना पर जन समूह ने किया वाह! वेदना के मर्म,भाव

जिस रचना पर
जन समूह ने किया वाह!
वेदना के मर्म,भाव,से फूटे शब्द 
जब जब दिल से निकली आह।

आंसुओ मे बदलने के लिए दर्द को,
उंगलियों ने फिर पकड़ी कलम,
मन मे घूमड़ते शब्दों के जाल से,
बनाने मर्म के लिए, नया मलहम।

प्रसाद, निराला, प्रेमचंद तपे थे,
कष्टमय जीवन की ज्वाला मे।
स्वर्ण भी पीट पीट कर ही,
स्वर्णकार गुंथता है माला मे।

संघर्ष तो हर प्राणी का साथी है,
समर्पण कर दो, चुन लो या जीत
तप कर, कुंदन बन जाना है श्रेयस्कर,
फिर जीवन से हो जाएगी सबको प्रीत।

©Kamlesh Kandpal
  #rachna