किस्सा रसकपूर - रागनी 9 परवाने लिए बाँच भूप ने धरी एक एक चिट्ठी न्यारी हलकारे तै बूझन लाग्या कित खुगी दिल की प्यारी मैं छह महिने तै लड़ूँ लड़ाई वा बण बैठी महाराणी ब्याहे मर्द की चिन्ता कोन्या के पड़गी बात पुराणी मेरी आत्मा तड़फे उस बिन वा के जाणे चोट बिराणी ना कोए चिट्ठी ना कोए पत्री मन्ने पड़गी याद कराणी शरीर एकला लड़ रहया जंग में एक जंग मन मे जारी वा रँगमहलां में ऐश करै कौण उसके दिल मे बसग्या मन्ने भुलाके उसके दिल मे किसका दिवा चसग्या कौण पौनिया विषधर होग्या जो मेरे चन्दण कै घिसगया रतनसिंह बण साँप आस्तीन मेरी खुशियां नै डसग्या मेरे तै दिल भरग्या उसका इब किसते ला ली यारी नई फौज की भरती करकै वा के करणा चाहवै सै राजद्रोह में दण्डित हो कै क्यूँ मरणा चाहवै सै अमीर खान के डेरे पै जा क्यूँ शरणा चाहवै सै मेरे दुश्मन के पाहया मे वा क्यूँ गिरणा चाहवै सै अधराजण का ओहदा पा कै वा रीत भूलगी सारी मानसिंह पै करी चढाई, मन्ने उसकी सलाह मान कै राजसिंहासन बिठा दई, मन्ने अपणी जगहा जाण कै दूध के धोखे कपास खा लिया इब पीऊँ शीत छाण कै आनन्द शाहपुर जंग झो रहया, उकै दया नहीँ डाण कै कथन समझ मे आ ज्यावै जब कर गावण की त्यारी गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया ©Anand Kumar Ashodhiya #रसकपूर #MereKhayaal