ज़िन्दगी कुछ खूबसूरत पलों की है दास्ताँ, वक़्त के आगे सभी लाचार, बेबस, बेजुबाँ, उम्मीदों की बाँध गठरी लक्ष्य का संधान कर, पाँव धरती पर रहे दिल में बसाकर आसमाँ, हमसफ़र हो सफ़र में यह भी जरूरी तो नहीं, राह में आएगी मुश्क़िल लेने तेरी इम्तिहाँ, आज जो मुँह फेर लेते देखकर तुमको यहाँ, कल वही आवाज़ देकर बुलाएँगे मेहरबां, जब कभी आवाज़ दोगे पास पाओगे मुझे, मेरे घर के रास्ते में है न कोई कहकशाँ, जाएँगे सब छोड़कर सारे मुसाफ़िर एकदिन, रात-दिन जिसको इकट्ठा कर रहे हैं ख़ामख़ाँ,, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #दास्ताँ#