अनजाने रास्ते, मंजिल एक हो सूरत कैसी भी हो पर सीरत नेक हो काँटो भरे रास्तों पर हम चल रहे है फूल जैसे लोग यँहा रास्ता भटकाने वाले रास्ते में मिलते है कैसे कैसे लोग रास्ते अनजान है मंजिल की भी ख़बर नही अकेले है हम हमसफ़र की भी ख़बर नही ठान ली है हमनें, मंजिल पाकर ही दम लेंगे मंजिल अगर ना पाई तो कभी भी नही दम लेंगे काश मेरे सँग सफ़र में तू होता तो सफ़र मुश्किल तो लगता पर नामुमकिन ना लगता। #अनजान_रास्ते,_मंज़िल_एक_team_alfaz #newchallenge There is new challenge of poem/2 line/4 line in whatsapp group (link in bio) Today's Topic is अनजान रास्ते, मंज़िल एक