यह मनुज कलि का , जीव ज्योँ बलि का , बन रहा हीन नेत्र का , रखे द्रग पर हाथ , करता अभिषेक -कूटिल काल का ज्योँ । मानव चर्म रखे सुरक्षित , अमानवता ही होती लक्षित , दूषित कर्म मेँ मग्न पड़ा है। पर्वतकी ऊँची चोटी पर , साथ विनाश को लिए खड़ा है। ह्दय के किलिष्ट भाग पर , शुद्धाचरण का तू रंग भर , दमके दामनि सा,ऐसा कर , उच्च रहे जो तेरा श्री सर , कुत्सित आग मैँ मत जल मर। छोड़ गरल,त्याग कुटिल मन , अर्पण करदे तू सारा तन , बन सरल त्याग,बड़प्पन , भर-भर विष फुंफकारे क्योँ फन , छोड़ अज्ञान,ला मन मेँ चेतन। रचना-यशपाल सिंह"बादल" ©Yashpal singh badal कलि मानव #TakeMeToTheMoon