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Yashpal singh gusain badal'

अपने अंतर्मन में झांको ! बहुत नाप चुके औरों को अब खुद को भी नापो !

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Yashpal singh gusain badal'

आसान नहीं है किसी को अपने सिर पे बिठा देना ,

बस मुश्किल इतनी  है फिर उतरता नहीं है कोई ।
यशपाल सिंह "बादल"

©Yashpal singh gusain badal'
  #Hope
 आसान नहीं है किसी को अपने सिर पे बिठा देना ,

मुश्किल इतनी सी है फिर उतरता नही है कोई ।

#Hope आसान नहीं है किसी को अपने सिर पे बिठा देना , मुश्किल इतनी सी है फिर उतरता नही है कोई । #शायरी

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Yashpal singh gusain badal'

ज़िंदगी
हसरतों  को  वक्त  की  आँधी  निगल  गई ।
इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई।

लाखों  जुगत    किए   उम्र-ए-दराज  की ।
दम साध के रक्खा और सांसें निकल गई ।

सौंपे थे जिसको हमने जिन्दगी के फैसले ।
उसके ही हाथ कत्ल जिन्दगी निकल गई ।

आब-ए-हयात पी के भी न बच सका यहाँ ।
माटी का बना था  सो  माटी  में मिल  गई ।

नाज है किस बात का किसका गुरूर है ।
अच्छे-अच्छों  की यहाँ हवा  निकल गई ।

थामे थे जिसको भींच के दिल के करीब से ।
हाथों  से  वो  प्यार  की  डोरी  फिसल  गई ।

"बादल" गलत उठे थे कदम  राह-ए-शौक में,
फिर सँभालते-संभालते जिन्दगी निकल गई।।

©Yashpal singh gusain badal'
  #retro ज़िंदगी
हसरतों  को  वक्त  की  आँधी  निगल  गई ।
इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई।

लाखों  जुगत    किए   उम्र-ए-दराज  की ।
दम साध के रक्खा और सांसें निकल गई ।

सौंपे थे जिसको हमने जिन्दगी के फैसले ।

#retro ज़िंदगी हसरतों  को  वक्त  की  आँधी  निगल  गई । इक खुशी की आश में; जिन्दगी निकल गई। लाखों  जुगत    किए   उम्र-ए-दराज  की । दम साध के रक्खा और सांसें निकल गई । सौंपे थे जिसको हमने जिन्दगी के फैसले । #कविता

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Yashpal singh gusain badal'

होली
रंग ही तो जीवन का दर्शन हैं ,
रंग ही जीवन का स्वभाव है,
हर रंग कुछ कहता है,
बिना रंगों के जीवन कितना मुश्किल है ?
कभी कल्पना करो !
हजारों रंग हैं जिंदगी के !
 रंग व्यक्त करते हैं अपने उद्गार !
रंगों को समझ लें अगर हम,
तो समझना आसान हो जाता है जिंदगी को !
मनुष्य रंगों के मिश्रण से बना है शायद !
रंग ही तो प्रकृति दर्शन है ।
 बिना रंगो के , अकल्पनीय है जीवन !
हर तरफ रंग बिखरे हैं ,
प्यार के रंग,भावनाओं के रंग,
उल्लास के रंग,अवसाद के रंग,
बिरह के रंग,उम्मीदों के रंग
भक्ति के रंग,श्रद्धा के रंग ,
रंगों से विमुखता ही तो अंधकार है !
रंग ही सुंदरता हैं ,
रंग ही सत्य है ,
रंगों से परिपूर्णता ही तो है समृद्धि !
 रंग ही परिवर्तन हैं 
कभी वसंत की तरह ,
कभी पतझड़ की तरह,
रंग  विस्मययुक्त हैं अनंत की तरह,
रंग ही जीवन को बनाते हैं जीवंत,आकर्षक,
जीवन को उद्देलित करते हैं रंग ,
रंग ही तो पहचान हैं सत, रज, तम के !
रंग ही जीवन है ,
चलो ! रंगों के साथ शामिल कर दें
अपने मन को भी !
चलो होली मनायें !
सदा हंसें !सदा मुस्कराएं !
चलो होली मनाएं !


रचना- यशपाल सिंह "बादल "

©Yashpal singh gusain badal'
  #Holi होली

#Holi होली #कविता

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Yashpal singh gusain badal'

#क्या तुम वही हो
क्या तुम उसी दौर में हो ?
वही पुरानी जिद्दोजहद, उसी पुरानी ठौर में हो !
यकीन करो, बहुत कुछ बदल गया है,
समंदर का बहुत सारा पानी भाप बनकर छन गया है,
नदियों ने भी कई किनारे बदल लिए,
कई शहर भी परतों के नीचे गुम हो गईं,
मगर तुम हो कि बदलते नहीं !
तुम भी एक नया सूरज उगाओ !
क्यों तुम उसी पुरानी भोर में हो ?
नए विचार उगाओ !
क्यों उसी दौर में हो !
अब न कोई कयामत है
न कोई जन्नत,न जहन्नुम है,
जो जीते जी मिल गया ,
स्वर्ग है वही,
नर्क है वही,
कल में नहीं आज में जी !
बदलती दुनियां की घुट्टी पी!
अब नूतन विचारों की नई भोर है,
नया कलरव है, नया रोर है,
नई दुनियां है, नया  ठौर है।

©Yashpal singh gusain badal' #arabianhorse
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Yashpal singh gusain badal'

असल   किरदार  इतिहास   लिखते   हैं,

झूठे    किरदार  तो  झूठ  पर  पलते   हैं ,

जमाना मगर कहाँ हक़ीक़त जानता है ?

अंधों का शहर है ,जहाँ आईने बिकते हैं ।

यशपाल सिंह "बादल"

©Yashpal singh gusain badal' #Hum असल   किरदार  इतिहास   लिखते   हैं,

झूठे    किरदार  तो  झूठ  पर  पलते   हैं ,

जमाना मगर कहाँ हक़ीक़त जानता है ?

अंधों का शहर है ,जहाँ आईने बिकते हैं ।

#Hum असल किरदार इतिहास लिखते हैं, झूठे किरदार तो झूठ पर पलते हैं , जमाना मगर कहाँ हक़ीक़त जानता है ? अंधों का शहर है ,जहाँ आईने बिकते हैं । #शायरी

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Yashpal singh gusain badal'

देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥

©Yashpal singh gusain badal' #navratri
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Yashpal singh gusain badal'

देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥

©Yashpal singh gusain badal'
  #navratri
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Yashpal singh gusain badal'

"उत्तराखंड"
गंगा-यमुना जिसका आँचल है,
बद्री-केदार जिसकी दो आँखेँ,
हर की पौड़ी सा निश्चछल मन,
गढवाल-कुमाऊँ जिसकी दो बाँहेँ।
 महान हिमालय जिसका मस्तक है,
ममता का सागर है नैनी,
रानीखेत जिसका चंचलपन,
रामगंगा है जिसकी वेणी,
गंगोत्री-यमुनोत्री जिसके कर्णपट,
उन्नत नासिका जिसकी है नंदा,
बिन्सर-नीलकंठ जैसे दो पलकेँ,
देवप्रयाग माथे पर चंदा।
 त्र्रिषिकेश पूजा की थाली,
मंसूरी-नैन ीताल मुख की लाली,
अल्मोड़ा-पौड़ी जिसकी साँसेँ हैँ,
हल्दवानी जिसकी है खुशहाली।
 नयनाभिराम स्थल कसौनी,
द्रोणनगरी बिद्या का मंदिर,
मुस्कान है फूलोँ की घाटी,
स्वाभाव उत्तरकाशी सा सुन्दर,
पिथोरागढ सा ह्रदय निर्मल,
चमोली सी शालीनता जिसमेँ
 टिहरी सा अनोखापन,
शिवालिक सी कठोरता है जिसमैँ ।
 देशप्रेम मेँ रंगा हुआहै 
जिसका कण-कण कोना-कोना ।
 वही स्वर्ग सी सुन्दर धरती 
जिसका हर टुकड़ा है सोना
 प्रक्रति सिँगार करती है जिसकी,
भारत माँ का अँग अखण्ड।
 पर्वत श्रँखलाओँ से घिरा हुआ,
अद्यितीय अनुपम उत्तराखण्ड ।।
 ले0 यशपाल सिँह "बादल"

©Yashpal singh gusain badal' #yogaday गंगा-यमुना जिसका आँचल है,

बद्री-केदार जिसकी दो आँखेँ,
हर की पौड़ी सा निश्चछल मन,
गढवाल-कुमाऊँ जिसकी दो बाँहेँ।
 महान हिमालय जिसका मस्तक है,
ममता का सागर है नैनी,
रानीखेत जिसका चंचलपन,

#yogaday गंगा-यमुना जिसका आँचल है, बद्री-केदार जिसकी दो आँखेँ, हर की पौड़ी सा निश्चछल मन, गढवाल-कुमाऊँ जिसकी दो बाँहेँ।  महान हिमालय जिसका मस्तक है, ममता का सागर है नैनी, रानीखेत जिसका चंचलपन, #कविता

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Yashpal singh gusain badal'

औरत
वो आये हैं जख्मों के निशान मिटाने के लिये ;
छेड़ेंगे फिर वही सुर ; मुझे सताने के लिये ।
लुटे हो किस तरह ! हँसके पूछता है हर कोई ;
इक सस्ता मजाक हो गया है जमाने के लिये ।
उफ! कितनी जिल्लत; कितना दर्द बहा था मेरी आँखों से;
मगर; लोगों को मसाला मिल गया भुनाने के लिये ।
जख्म नासूर बन गया; मेरा कानून के दायरे में ;
मगर;कोई ढूंढता रस्ता ; कद बढाने के लिये ।
कई खुश हैं चलो ; नदी के किनारे तो टूटे !
अब रस्ते कई खुलेंगे; प्यास बुझाने के लिये ।
फसाना-ए-गम किसे कहें "बादल" इन रुसवाइयों के आँगन में ;
  नाचेगा कौन ? अब मुझे फिर से हंसाने के लिये ।


रचना -यशपाल सिंह "बादल"

©Yashpal singh gusain badal'
  औरत

#Anhoni औरत
वो आये हैं जख्मों के निशान मिटाने के लिये ;
छेड़ेंगे फिर वही सुर ; मुझे सताने के लिये ।
लुटे हो किस तरह ! हँसके पूछता है हर कोई ;
इक सस्ता मजाक हो गया है जमाने के लिये ।
उफ! कितनी जिल्लत; कितना दर्द बहा था मेरी आँखों से;

औरत #Anhoni औरत वो आये हैं जख्मों के निशान मिटाने के लिये ; छेड़ेंगे फिर वही सुर ; मुझे सताने के लिये । लुटे हो किस तरह ! हँसके पूछता है हर कोई ; इक सस्ता मजाक हो गया है जमाने के लिये । उफ! कितनी जिल्लत; कितना दर्द बहा था मेरी आँखों से; #कविता

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Yashpal singh gusain badal'

क्या तुम वही हो ?

क्या तुम उसी दौर में हो ?
वही पुरानी जिद्दोजहद उसी पुरानी ठौर में हो !
यकीन करो, बहुत कुछ बदल गया है,
समंदर का बहुत सारा पानी भाप बनकर छन गया है,
नदियों ने भी कई किनारे बदल लिए,
कई शहर भी परतों के नीचे गुम हो गईं,
मगर तुम हो कि बदलते नहीं !
तुम भी एक नया सूरज उगाओ !
क्यों तुम उसी पुरानी भोर में हो ?
नए विचार उगाओ !
क्यों उसी दौर में हो !
अब न कोई कयामत है
न कोई जन्नत,न जहन्नुम है,
जो जीते जी मिल गया ,
स्वर्ग है वही,
नर्क है वही,
कल में नहीं आज में जी !
बदलती दुनियां की घुट्टी पी!
अब नूतन विचारों की नई भोर है,
नया कलरव है, नया रोर है,
नई दुनियां है, नया  ठौर है।

©Yashpal singh gusain badal' #lonely क्या तुम उसी दौर में हो ?
वही पुरानी जिद्दोजहद उसी पुरानी ठौर में हो !
यकीन करो, बहुत कुछ बदल गया है,
समंदर का बहुत सारा पानी भाप बनकर छन गया है,
नदियों ने भी कई किनारे बदल लिए,
कई शहर भी परतों के नीचे गुम हो गईं,
मगर तुम हो कि बदलते नहीं !
तुम भी एक नया सूरज उगाओ !

#lonely क्या तुम उसी दौर में हो ? वही पुरानी जिद्दोजहद उसी पुरानी ठौर में हो ! यकीन करो, बहुत कुछ बदल गया है, समंदर का बहुत सारा पानी भाप बनकर छन गया है, नदियों ने भी कई किनारे बदल लिए, कई शहर भी परतों के नीचे गुम हो गईं, मगर तुम हो कि बदलते नहीं ! तुम भी एक नया सूरज उगाओ ! #कविता

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