a-person-standing-on-a-beach-at-sunset स्तंभ बोझ उठाता भवन का होकर अडिग स्तंभ फिर भी मन में तनिक भी रहता कभी न दंभ उसके हिलने डुलने से आ जाता है संकट लोग भवन खाली करके दूर भागते झटपट इसीलिए सब चाहते हो स्तंभ मजबूत हिले नहीं ,भूकंप के जाएं पसीने छूट जमें रहें अपनी जगह जनु अंगद के पाँव इनकी ही अनुकंपा से सिर पर छत की छाँव कहता हमसे जब तक ना मैं जर्जर हो जाऊँ तब तक हो बेफिक्र रहो है यह भवन टिकाउँ हम सबको शिक्षा देते कभी न खाना धैर्य जिस मुकाम पर हों बेखुद वहीं दिखाएँ शौर्य ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #स्तंभ