जीने को तन्हा उम्र ये वीरान दे गए हमने तो दिल दिया, वो मगर जान दे गए //१ शादी से मेरीे मेरे ससुर ही थे सबसे ख़ुश परचून की जो उनकी थी दूकान दे गए //२ माथा पकड़ के बैठा था मैं सुब्ह शादी के मेरी ख़ता थी क्या जो ये भगवान दे गए //३ भगवान है ससुर जी ही का नाम क्या कहें दीवाना था मैं, सोने को दीवान दे गए //४ मेरे ससुर थे वाक़ई चालक सेल्समैन कह के हवा का झोंका वो तूफ़ान दे गए //५ अब क्या कहूँ ससुर थे मेरे सो ज़हेज़ में लड़ने को सारी उम्र पहलवान दे गए //६ अच्छा चलो कि 'राज़' करो सब्र सोचकर जो दे गए सो दे गए, भगवान दे गए //७ ~राज़ नवादवी माँ पे, माशूक़ पे सबने लिखा है, मैंने ससुर जी पे लिखा है। पेशे ख़िदमत है ये मज़ाहिया ग़ज़ल।