हो दोपहर की नींद जैसी ज़िन्दगी तो बात क्या हो चाय जैसी शाम तो उबासियों का काम क्या हो धूप में जो नर्मियाँ तो रूत नई बहार क्या हो नींद का नशा बहुत तो मैख़ाने का काम क्या हो होठों पे पैगाम अगर तो धड़कनों का नाम क्या हो दिन की मस्त चांदनी तो रात का है काम क्या हो आम सा वो दिन बड़ा तो ख़ास का अभिमान क्या हो वक़्त से फुर्सत कभी तो सोचें जिंदिगी का काम क्या हो सादगी में बात कुछ तो फूहड़ता का मोल क्या हो फ़तेह की जो लालसा तो शिकश्त का है काम क्या हो बारिश की जो बूंद चंद तो सैलाब का है काम क्या हो मंद सी मुस्कान तो ठहाको का काम क्या - उज्जवल #dopeharkineend #Zindagi #kaam #thought #poetry