सचमुच का वैज्ञानिक बनने के लिए कई कई साल तक 14-16 घंटे पढ़ाई करनी पड़ती है, शोध करना पड़ता है, कई बार बिना किसी मेहनताने के लैब में सालों काम करना पड़ता है. और सफलता मिलने के बाद भी उसे इतने पैसे नहीं मिलते कि वह शान की जिंदगी जी सके. वह एक साधारण जिंदगी जीता है. वहीं परदे पर चंद मिनटों के लिए एक वैज्ञानिक होने की एक्टिंग करने के लिए एक एक्टर 70-80 करोड़ रुपए लेता है, और उसके बाद भी उसका अभिनय अच्छा नहीं होता. और वैज्ञानिक की भूमिका निभाते हुए वह देशवासियों को अंधविश्वास बेचता है. लोग खुश होकर तालियां बजाते हैं, गर्व महसूस करते हैं. वैज्ञानिकों को सैल्यूट मारते हैं. लेकिन असल में न उन्हें विज्ञान से लेना देना होता है और न वैज्ञानिकों से. इसके अलावा सोचने की भी बात है कि दुनिया में किसी भी काम के इतने पैसे क्यों मिलने चाहिए? दुनिया का कोई काम ऐसा नहीं हो सकता जिससे किसी को 12 घंटे काम करके महीने के पांच हजार रूपए मिले और किसी को चार घंटे काम करके 50 करोड़. श्रम को लेकर हमारी आपकी इस घटिया सोच पर थोड़ा विचार कीजिए. वरना तो तमाशा देखकर तो बंदर भी खुश हो लेता है. हम शायद बंदरों से बेहतर हैं! #सोचने_वाली_बात