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फूल देई का त्यौहार था, मैं फिर भी बैठा अकेला था ।

फूल देई का त्यौहार था,
मैं फिर भी बैठा अकेला था ।
चारों तरफ़ हर्षोल्लास था,
मैं अकेला बैठा निराश था ।
जब मैने चारों तरफ देखा ,
तब पता चला कि
मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में
बैठा अकेला उदाश था ।।
✍️ Jagdish Pant

©Jagdish Pant आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।
फूल देई का त्यौहार था,
मैं फिर भी बैठा अकेला था ।
चारों तरफ़ हर्षोल्लास था,
मैं अकेला बैठा निराश था ।
जब मैने चारों तरफ देखा ,
तब पता चला कि
मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में
बैठा अकेला उदाश था ।।
✍️ Jagdish Pant

©Jagdish Pant आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।
jagdishpant7427

Jagdish Pant

New Creator

आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।