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धन्यवाद हूँ करता उनकों ज्ञापित अधरस्ते छोड़ कर जो

धन्यवाद हूँ करता उनकों ज्ञापित 
अधरस्ते छोड़ कर जो चले गए ।
उनकों तो जाना ही था एक दिन
भला हुआ जो पहले चले गए ।

छल कपट धोखा कभी न जाना
होता है ये सब क्या दिखा गए ।
पानी सा निश्छल हृदय होने का
परिणाम वो मुझकों सीखा गए ।

कष्ट मिला जब मौन हुआ मैं
मुझें मौन की महिमा बता गए ।
मोम था पहले सूर्य हुआ अब
भला हो उनका जो सता गए ।

रिश्तों का मोल बचा है जितना
रिश्ता वो उतना ही निभा गए।
तप कर मैंने चमक का पाया
अच्छे थे अपने जो जला गए।

धोखे सहना, एकांत में रोना
अनुभव का विष वो पिला गए।
अफसोस बस होता है इतना
सम्बन्धो को मिट्टी में मिला गए।

(स्वरचित व मौलिक)
शशिकान्त वर्मा 'शशि'
जौनपुर, उत्तर प्रदेश।

©SHASHIKANT
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