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सामने दिखती आड़ी-टेढ़ी सीढ़ियों की, वो मुश्किल सी सरग

सामने दिखती आड़ी-टेढ़ी सीढ़ियों की, वो मुश्किल सी सरगम,
जिसके ऊपर से छलाँग मारके, उड़के कूदने का ख़्वाब लिए हम,
आ ही रही थी हमारे घुटने में, चोट के मंसूबे वाली वो शातिर घड़ी,
तभी ये हरक़त टोकती माँ की आवाज़, सामने ज़िद-सी आ खड़ी,
नादान हम गुस्से में, घर से बाहर दौड़ पड़े चिल्लाते हुए इस जहाँ पे,
बड़बड़ाते हुए, के अपनी मर्ज़ी से हम, कुछ कर नहीं पाते हैं यहाँ पे,
पर माँ का प्यार तो अलग ही है, ना आव देखा ना ताव बस सूत दिया,
फिर रोता देख, मनपसंद आलू का परांठा बनाके प्यार का सबूत दिया,
ऊपरवाले से ऊपर दर्जा, माँ की ममता का ना कोई भी हिस्सा कच्चा है,
ना इम्तेहान, ना कोई शर्त, बस यही एक रिश्ता दुनिया में सबसे सच्चा है।


- आशीष कंचन
 मेरी माँ
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सामने दिखती आड़ी-टेढ़ी सीढ़ियों की, वो मुश्किल सी सरगम,
जिसके ऊपर से छलाँग मारके, उड़के कूदने का ख़्वाब लिए हम,
आ ही रही थी हमारे घुटने में, चोट के मंसूबे वाली वो शातिर घड़ी,
तभी ये हरक़त टोकती माँ की आवाज़, सामने ज़िद-सी आ खड़ी,
नादान हम गुस्से में, घर से बाहर दौड़ पड़े चिल्लाते हुए इस जहाँ पे,
बड़बड़ाते हुए, के अपनी मर्ज़ी से हम, कुछ कर नहीं पाते हैं यहाँ पे,
पर माँ का प्यार तो अलग ही है, ना आव देखा ना ताव बस सूत दिया,
फिर रोता देख, मनपसंद आलू का परांठा बनाके प्यार का सबूत दिया,
ऊपरवाले से ऊपर दर्जा, माँ की ममता का ना कोई भी हिस्सा कच्चा है,
ना इम्तेहान, ना कोई शर्त, बस यही एक रिश्ता दुनिया में सबसे सच्चा है।


- आशीष कंचन
 मेरी माँ
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