जान हीं लेनी थी साफ़ कह देते ओ बेदर्द यूँ मुस्कुराने की ज़रूरत हीं क्या थी यूँ तो सरेराह लुट हीं गये थे हम पर यूँ मीठी बातों में फ़ंसाने की ज़रूरत हीं क्या थी हम तो कब से मदहोश हुए पड़े हैं इश्क़ में आपके तो फ़िर यूँ आँखों से ज़ाम पिलाने की ज़रूरत हीं क्या थी जाने कितनी जानें ख़ुद गँवा दी लोगों ने आपके सज़दे में तो फ़िर यूँ हुश्न दिखाकर कत्ले-आम करने की ज़रूरत हीं क्या थी राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी #जालिम