चार कदम की जिंदगी मे सफर गुजरेगा उम्र भर का। उम्र है चार दिन की तो सफर रहेगा शायद अधुरा कहीं। कभी है कुछ शामें हसिन तो कभी रातें दिलकश है, दिन है कभी लाचार तो कभी खुशीयाँ है जैसे कुछ आधी-अधुरी सी। वक्त, मौसम, है हालातों के साथ बदलते जज्बात है, बदलते जैसे खुलते हुऐ पन्ने अब तो बस है हसरते कुछ अधूरी-सी ,तो मन है बेचैन जैसे हर-घड़ी अब तो देखा करता हूँ, ढूँढ़ा करता नई राहें जिंदगी की ही खोज में। कुछ कदम थे डगमगाऐ मेरे भी कभी, पर संभलना सिखा है वक्त के सहारे और चलते रहना सिखा गुजरे हुऐ सफर के सहारे। ©SAHIL KUMAR चार कदम