रहनुमा हैं तू इस दिल का, तुझे ढूँढती हैं मेरी नज़रें हरपल दीदार-ए-यार को तरसती है यह मेरी नज़रें झलक जो तेरी पाने को कुछ भी करना चाहे नज़रें करती हैं गुस्ताख़ी, नादानी और मनमानी यह नज़रें तुम्हें पाने की आरज़ू में हर कोशिश करती ये नज़रें अदावत से बाज आती है ना ही बग़ावत से ये नज़रें इन नजरों को कोई भाता नहीं, "मन" लुभाता नहीं तू शामिल रूह में, दिल किसी और को चाहता नहीं ♥️ Challenge-579 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।