इस नज़्म को रख दो सिरयने तुम्हे नींद नही अब आएगी करवट में समेट लो यादों को साँसों के अलाव से सुलगा दो आँखों को खुली रहने देना और मिलना सियाह अंधेरो से छू कर सुन्ना खामोशी को के मैन खुदखुशी क्यों की थी कितना था अकेला खालीपन में कितनी रातें जागा था इस रात की सुबहा नही होगी तुम जिस्म के साथ को ठुकरादो करलो ये कुबूल के खत्म है सब कल तुमने खुदखुशी कर ली है -- गौतम ©Gautam Prajapati Khudkhushi