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इस नज़्म को रख दो सिरयने तुम्हे नींद नही अब आएगी क

इस नज़्म को रख दो सिरयने
तुम्हे नींद नही अब आएगी

करवट में समेट लो यादों को
साँसों के अलाव से सुलगा दो

आँखों को खुली रहने देना
और मिलना सियाह अंधेरो से

छू कर सुन्ना खामोशी को
के मैन खुदखुशी क्यों की थी

कितना था अकेला खालीपन
में कितनी रातें जागा था

इस रात की सुबहा नही होगी 
तुम जिस्म के साथ को ठुकरादो

करलो ये कुबूल के खत्म है सब
कल तुमने खुदखुशी कर ली है

                                                               -- गौतम

©Gautam Prajapati Khudkhushi
इस नज़्म को रख दो सिरयने
तुम्हे नींद नही अब आएगी

करवट में समेट लो यादों को
साँसों के अलाव से सुलगा दो

आँखों को खुली रहने देना
और मिलना सियाह अंधेरो से

छू कर सुन्ना खामोशी को
के मैन खुदखुशी क्यों की थी

कितना था अकेला खालीपन
में कितनी रातें जागा था

इस रात की सुबहा नही होगी 
तुम जिस्म के साथ को ठुकरादो

करलो ये कुबूल के खत्म है सब
कल तुमने खुदखुशी कर ली है

                                                               -- गौतम

©Gautam Prajapati Khudkhushi