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प्रेम मनुष्य की प्राण वायु है प्रेम की खेती बड़े पै

प्रेम मनुष्य की प्राण वायु है
प्रेम की खेती बड़े पैमाने पर करनी होगी 
वो इसलिए कि आज हिंसा के दावानल  मे
समाज  और साजाजिक प्राणी झुलस रहा है
अचानक ये इंसान इतना हिंसक क्यो हो गया है?
क्योंकि प्रेम  से विमुख  मनुध्य के लिए
जिंदगी का कोई मूल्य नहीं रह गया है
समस्त मानवता आज निष्प्रेम  रेगिस्तान मे जी
रही है. जहाँ सिर्फ सूखी बालू के अतिरिक्त  कुछ नहीं
मिलता है

©Parasram Arora निष्प्रेम रेगिस्तान
प्रेम मनुष्य की प्राण वायु है
प्रेम की खेती बड़े पैमाने पर करनी होगी 
वो इसलिए कि आज हिंसा के दावानल  मे
समाज  और साजाजिक प्राणी झुलस रहा है
अचानक ये इंसान इतना हिंसक क्यो हो गया है?
क्योंकि प्रेम  से विमुख  मनुध्य के लिए
जिंदगी का कोई मूल्य नहीं रह गया है
समस्त मानवता आज निष्प्रेम  रेगिस्तान मे जी
रही है. जहाँ सिर्फ सूखी बालू के अतिरिक्त  कुछ नहीं
मिलता है

©Parasram Arora निष्प्रेम रेगिस्तान

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