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|| सफर || किस मंजिल की मुसाफिर हूँ चुन लिया मैंने

|| सफर ||
किस मंजिल की मुसाफिर हूँ चुन लिया मैंने 
पर सफर से बेखबर राह से अनजान हूँ ।
तो क्या रुक जाऊँ या बैठ जाऊँ हाथ पर हाथ धरे सोचकर ये ....
होगा वही जो लिखा है भाग्य में मेरे भाग्य में मेरे
  नहीं ये ठीक नहीं है। नहीं  ये न्याय नही है।
क्योंकि चलना जिंदगी है थमना बुज्दिली है।
बैठी थी अब तक फूलों सी सेज पे
खोयी थी रंगीन सपनों में 
आगे जाने काँटों भरी अंधकारमयी डगर हो
और शोलों से तपते पथ हों
   तो क्या रुक जाऊँ ..........भाग्य में मेरे
    चलूँ न तब तक कि कोई साथ न चले
    नहीं  वक्त रुकता नहीं पीछे लौटता नहीं 
    जीवन के सफर में कोई साथ चलता नहीं 
      और कोई साथ देता नहीं है 
तो क्या रुक जाऊँ या ........... भाग्य में मेरे।
   नहीं ये न्याय संगत नहीं ये, ये तर्क संगत नहीं है 
भाग्य के विचार से, अर्कमण्डय से आलम में 
रह जाऊँगी मैं  सबसे पीछे और अकेले 
कैसे काट पाऊँगी वो पल जिन्दगी के।
      चलना मुझे अकेले,बढ़ना मुझे अकेले 
      जाना सबसे आगे छितिज पे
          दमकूँ मैं वहाँ सूरज बनके।
पारुल शर्मा किस #मंजिल की #मुसाफिर हूँ #चुन लिया मैंने 
पर #सफर से #बेखबर #राह से #अनजान हूँ ।
तो क्या #रुक जाऊँ या बैठ जाऊँ #हाथ पर हाथ धरे #सोचकर ये ....
होगा वही जो लिखा है #भाग्य में मेरे भाग्य में मेरे
  नहीं ये ठीक नहीं है। नहीं  ये #न्याय नही है।
क्योंकि चलना #जिंदगी है #थमना #बुज्दिली है।
बैठी थी अब तक #फूलों सी #सेज पे
खोयी थी #रंगीन #सपनों में
|| सफर ||
किस मंजिल की मुसाफिर हूँ चुन लिया मैंने 
पर सफर से बेखबर राह से अनजान हूँ ।
तो क्या रुक जाऊँ या बैठ जाऊँ हाथ पर हाथ धरे सोचकर ये ....
होगा वही जो लिखा है भाग्य में मेरे भाग्य में मेरे
  नहीं ये ठीक नहीं है। नहीं  ये न्याय नही है।
क्योंकि चलना जिंदगी है थमना बुज्दिली है।
बैठी थी अब तक फूलों सी सेज पे
खोयी थी रंगीन सपनों में 
आगे जाने काँटों भरी अंधकारमयी डगर हो
और शोलों से तपते पथ हों
   तो क्या रुक जाऊँ ..........भाग्य में मेरे
    चलूँ न तब तक कि कोई साथ न चले
    नहीं  वक्त रुकता नहीं पीछे लौटता नहीं 
    जीवन के सफर में कोई साथ चलता नहीं 
      और कोई साथ देता नहीं है 
तो क्या रुक जाऊँ या ........... भाग्य में मेरे।
   नहीं ये न्याय संगत नहीं ये, ये तर्क संगत नहीं है 
भाग्य के विचार से, अर्कमण्डय से आलम में 
रह जाऊँगी मैं  सबसे पीछे और अकेले 
कैसे काट पाऊँगी वो पल जिन्दगी के।
      चलना मुझे अकेले,बढ़ना मुझे अकेले 
      जाना सबसे आगे छितिज पे
          दमकूँ मैं वहाँ सूरज बनके।
पारुल शर्मा किस #मंजिल की #मुसाफिर हूँ #चुन लिया मैंने 
पर #सफर से #बेखबर #राह से #अनजान हूँ ।
तो क्या #रुक जाऊँ या बैठ जाऊँ #हाथ पर हाथ धरे #सोचकर ये ....
होगा वही जो लिखा है #भाग्य में मेरे भाग्य में मेरे
  नहीं ये ठीक नहीं है। नहीं  ये #न्याय नही है।
क्योंकि चलना #जिंदगी है #थमना #बुज्दिली है।
बैठी थी अब तक #फूलों सी #सेज पे
खोयी थी #रंगीन #सपनों में
parulsharma3727

Parul Sharma

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