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कहीं महकती कलियांँ, भौरों का गुंजन ,तो कहीं बरसता

कहीं महकती कलियांँ, भौरों का गुंजन ,तो कहीं बरसता सावन है,
सब जन करो प्रेम प्रकृति से, यह संबंध बड़ा ही पावन है।

कहीं बहती नदियांँ, उफनता सिंधु, तो कहीं पर शांत सरोवर है।
संजो कर रख मानव प्रकृति को, यह हम सबकी अमूल्य धरोहर है।

कभी हेमंत, शिशिर, वसंत, वर्षा, ग्रीष्म, तो कभी ऋतु शीत -शरद् है।
स्वार्थ विलीन हो नष्ट न कर, क्यों निर्लज्ज हुआ इतना खुदगर्ज़ है।

पशु - पक्षी, वन-वनस्पति, अभय- अरण्य,सब प्रकृति के आभूषण हैं।
खनन- हनन सब समाप्त कर ,करना हमें जैव विविधता का संरक्षण है।

रंग - बिरंगे फूल और तितली, जीवन का रंग-रूप हमें बतलाते हैं।
नग, नद, नभ, नक्षत्र नाना रूप में, प्रकृति प्रेम हमें सिखलाते हैं। #dr_naveen_prajapati#शून्य_से_शून्य_तक
#कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है..
कहीं महकती कलियांँ, भौरों का गुंजन ,तो कहीं बरसता सावन है,
सब जन करो प्रेम प्रकृति से, यह संबंध बड़ा ही पावन है।

कहीं बहती नदियांँ, उफनता सिंधु, तो कहीं पर शांत सरोवर है।
संजो कर रख मानव प्रकृति को, यह हम सबकी अमूल्य धरोहर है।

कभी हेमंत, शिशिर, वसंत, वर्षा, ग्रीष्म, तो कभी ऋतु शीत -शरद् है।
स्वार्थ विलीन हो नष्ट न कर, क्यों निर्लज्ज हुआ इतना खुदगर्ज़ है।

पशु - पक्षी, वन-वनस्पति, अभय- अरण्य,सब प्रकृति के आभूषण हैं।
खनन- हनन सब समाप्त कर ,करना हमें जैव विविधता का संरक्षण है।

रंग - बिरंगे फूल और तितली, जीवन का रंग-रूप हमें बतलाते हैं।
नग, नद, नभ, नक्षत्र नाना रूप में, प्रकृति प्रेम हमें सिखलाते हैं। #dr_naveen_prajapati#शून्य_से_शून्य_तक
#कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है..