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माँ (दोहे) देखो माँ की याद में, रहता हूँ बेचैन। स

माँ (दोहे)

देखो माँ की याद में, रहता हूँ बेचैन।
स्वर्ग लोक में जा बसीं, तड़पूँ मैं दिन रैन।।

पाता दुलार आपसे, अब खो गया नसीब।
होती जो माँ पास में, करता कुछ तरकीब।।

कर सेवा मैं आपकी, पाता आशीर्वाद।
कविता पर ही आपने, दी है मुझको दाद।।

नजर मुझे न कभी लगे, रखती इसका ख्याल।
चोट जरा सी जो लगी, हो जाती बेहाल।।

माँ मेरी बुनियाद थी, वो ही ईश समान।
छीन उन्हें मुझसे लिया, ये कैसा वरदान।।

औरों को जब देखता, उनकी माँ के साथ।
मुझको क्यों वंचित किया, मेरे दीना नाथ।।

माँ न साथ मेरे रही, किस्मत को मंजूर।
मेरी ही वो आस थी, मेरा यही कसूर।।

निर्भर ज्यादा हो गया, तुम जो थीं संसार।
तुम से ही आबाद था, हूँ माँ अब लाचार।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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