इक अधूरी जिंदगी थी इक अधूरी जिन्दगी है। दूर तक फैली हुईं बस तीरगी ही तीरगी है।। , अब नहीं चाहत है कोई अब नहीं हसरत बची है। अब नहीं कोई तमन्ना बेदिली ही बेदिली है।। , बेतहाशा ढूंढते है हम किसी को जो नहीं है। हम बताए क्या तुम्हें अब शाइरी ही तिश्नगी है।। , इक अदद वो शख़्स था जो जा चुका है छोडकर के। आप कहते हो जहाँ में आदमी ही आदमी है।। , सच पे पर्दा डाल करके झूठ का दम भर रहें हो। सोचते हो तुम जहां में रोशनी ही रोशनी है।। , आख़िरत में बात होगी तुम मिलोगे सर झुका के। पर नहीं बातें करेंगें तुमसे थोड़ी दोस्ती है।। , जा रहें है हम जहाँ से तुमको ये मालूम होगा। जब खुदा है साथ मेरे मुझकों अब कैसी कमी है।।