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ऐ मेरे क़ातिल तू मुझे नहीं, मेरे अरमान जला सकता ह

ऐ मेरे क़ातिल तू मुझे नहीं, 
मेरे अरमान जला सकता है,
मैं तो अपने ख्वाबों की चिता पर हर रोज सोता हूं,
मेरी मर्यादाओं की भष्म में
जब चाहे तलाश लेना
एक एक फकीर हर
कलम बाज के पास मिलता है।
ऐ मेरे क़ातिल तू मुझे नहीं, 
मेरे अरमान जला सकता है,
मैं तो अपने ख्वाबों की चिता पर हर रोज सोता हूं,
मेरी मर्यादाओं की भष्म में
जब चाहे तलाश लेना
एक एक फकीर हर
कलम बाज के पास मिलता है।