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सुखद स्मृतियों के साथ स्कूल में बिते पल की लम्बी द

सुखद स्मृतियों के साथ स्कूल में बिते पल की लम्बी दास्ताँ..
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बचपन ,स्कूल ,गाँव मुझे बहुत शिद्दत से याद आ रहा है...रौनकें दिन-ब-दिन गायब होती रही हैं...पर मुझे याद रह गये ये दिन और स्कूल के दिनों की लंबी दास्ताँ.....

स्कूल में बीता हर क्षण वैसे ही मेरी आँखो के सामने है.. जैसे एक शॉर्ट फिल्म)। वो दिन कुछ यूँ छूट रहे थे यह गाँव दोस्त और सच्चे गुरु जी ... फिर मैं खुद को कोसते हुयें एक बार स्कूल घूमना चाहता हूँ ....उन्हीं ख्वाबों में जीना चाहता हूँ! 

जहाँ ऊंची दीवारों के अलावा मुझे कोई न पहचानता होगा शायद...झुलसाती,आग बरसाती गर्मियों के बाद प्यासी धरती को जीवन से सराबोर करने आता है सावन ...लू के थपेड़ों के बाद..मंद मंद बसंती बहार का आना....! 

प्रकृति का दुलार पाकर झूलने लगतीं हैं नीम की शाखें और उन दरख़्तों पर निबोरी,सांगरी और पिंलू के गुच्छे तैरने लगते है हवा में भीगी कोपलों की खुशबू .... 

बारिश की बूंदें बिखेर देती है फिजा में मिट्टी की सौंधी सौंधी सुगंध ....उन दिनों में धरती सुंदर एक दुल्हन की तरह सजी हुई होती..देखो अजीब कुदरती श्रृंगार....बरसात के दिनों अपने गाँव में लहलहाती फसले हरे खेत,मैदान,चरागाह और सूरज छिप जाने पर आता गायों का झुंड....मौसम की अंगड़ाई के साथ कहीं रुखसत होती हैं ..खूंम्भी तो कहीं जमीन से फूट पड़ता है....नन्हा अंकुर।

आंखों में उम्मीद की चमक और चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए आने लगते हैं स्कूलों में हजारों छात्र और फिर शुरू होता है...सिलसिला एडमिशन और हॉस्टल के लिए भागदौड़ का... जून और जुलाई के महीने में नोटिस बोर्ड के सामने उमड़ने लगती है नए-नए छात्रों की भीड़। फिर अगस्त से धीरे-धीरे शुरू होता है सिलेबस और नोट्स ज़ेरॉक्स करवाने का सिलसिला......विद्यालय दुनिया की सबसे प्यारी जगहों में से एक थी मेरे लिए ..... एक जन्नत! 

वो नई पुरानी किताबों के सफेद पीले रंगीन पन्नों के बीच की खुश्बू को महसूस करना। किसी किताब को कमरे में ही दरी के नीचे कहीं छुपा देना,वो क्लास की बेंच पर चुपचाप अपना नाम लिख देना......किसी नाम को आधा लिख कर मिटा देना बाद में मुड़ कर देखने पर ये दिन बहुत याद आते हैं..बडी़ शरारतों वाले दिन...जो अब बिछड़े पलो की याद दिलाते हैं....लेकिन ये यादों के सिवा हकीकत में दुबारा नही आने वाले ,कभी नहीं ... 

पर क्या सबके लिए स्कूल की दुनिया इतनी ही प्यारी होती है...कल तक जो स्कूल के नन्हे मुन्ने बच्चे थे उनमें से कई आगे की चौखट पर कदम रखते हैं....कई छात्रों के कंधे से स्कूली बस्ते का बोझ तो उतर जाता है......पर इनके नाजुक कंधों पर पढ़ाई के साथ साथ घर की जिम्मेदारियों का भार भी आ जाता है। माँ बाप की प्यारी सी दुनिया को पीछे छोड़ कर स्कूल आने वाले कई छात्र नए माहौल और नए दोस्तों को लेकर शुरू शुरू में थोड़े सहमे भी होते हैं..मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ??

उस वर्ष प्रवेश प्रक्रिया के दौरान मुझे कई खट्टे मीठे अनुभव हुए। हर छात्र के पास अपने अनुभवों की लंबी दास्तान है...हाँ यादें ही होगी??जुलाई के दूसरे हफ्ते में मुझे छात्रों (स्कूल बस में सफर करने वाले साथियों से पहचान का होना)का लंबा अवसर मिला.....उसमें सोनू बोस जिनका साल दो हजार अठारह में भारतीय रेलवे में चयन हुआ।और सुरेश जयपुर में बी एस सी नर्सिंग का स्टूडेंट है‍.......जिसने मोहब्बत के असंख्य दरवाज़े खोले...रेत हो या जंगल,चाहे ज़मीन हो या समन्दर सब जगह मोहब्बत से बदलाव हो सकता है ..क्योकि मैं भी ज़िन्दगी के हर रंग को सिर्फ आपकी खुशबू से पहचान पाया।
जब से सामाजिक चेतना जागृत हुई तब से ख्वाब-आने लगे ..आपसे मिलना और लक्ष्य के प्रति समर्पित होना..सपनें जैसे अद्वितीय क्षण प्रदान करने के लिये....माँ सरस्वती विद्यालय का शुक्रगुजार हूँ !
➤❀▬▬ ▬▬❀➤   -©मजीत
  #school story
सुखद स्मृतियों के साथ स्कूल में बिते पल की लम्बी दास्ताँ..
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बचपन ,स्कूल ,गाँव मुझे बहुत शिद्दत से याद आ रहा है...रौनकें दिन-ब-दिन गायब होती रही हैं...पर मुझे याद रह गये ये दिन और स्कूल के दिनों की लंबी दास्ताँ.....

स्कूल में बीता हर क्षण वैसे ही मेरी आँखो के सामने है.. जैसे एक शॉर्ट फिल्म)। वो दिन कुछ यूँ छूट रहे थे यह गाँव दोस्त और सच्चे गुरु जी ... फिर मैं खुद को कोसते हुयें एक बार स्कूल घूमना चाहता हूँ ....उन्हीं ख्वाबों में जीना चाहता हूँ! 

जहाँ ऊंची दीवारों के अलावा मुझे कोई न पहचानता होगा शायद...झुलसाती,आग बरसाती गर्मियों के बाद प्यासी धरती को जीवन से सराबोर करने आता है सावन ...लू के थपेड़ों के बाद..मंद मंद बसंती बहार का आना....! 

प्रकृति का दुलार पाकर झूलने लगतीं हैं नीम की शाखें और उन दरख़्तों पर निबोरी,सांगरी और पिंलू के गुच्छे तैरने लगते है हवा में भीगी कोपलों की खुशबू .... 

बारिश की बूंदें बिखेर देती है फिजा में मिट्टी की सौंधी सौंधी सुगंध ....उन दिनों में धरती सुंदर एक दुल्हन की तरह सजी हुई होती..देखो अजीब कुदरती श्रृंगार....बरसात के दिनों अपने गाँव में लहलहाती फसले हरे खेत,मैदान,चरागाह और सूरज छिप जाने पर आता गायों का झुंड....मौसम की अंगड़ाई के साथ कहीं रुखसत होती हैं ..खूंम्भी तो कहीं जमीन से फूट पड़ता है....नन्हा अंकुर।

आंखों में उम्मीद की चमक और चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए आने लगते हैं स्कूलों में हजारों छात्र और फिर शुरू होता है...सिलसिला एडमिशन और हॉस्टल के लिए भागदौड़ का... जून और जुलाई के महीने में नोटिस बोर्ड के सामने उमड़ने लगती है नए-नए छात्रों की भीड़। फिर अगस्त से धीरे-धीरे शुरू होता है सिलेबस और नोट्स ज़ेरॉक्स करवाने का सिलसिला......विद्यालय दुनिया की सबसे प्यारी जगहों में से एक थी मेरे लिए ..... एक जन्नत! 

वो नई पुरानी किताबों के सफेद पीले रंगीन पन्नों के बीच की खुश्बू को महसूस करना। किसी किताब को कमरे में ही दरी के नीचे कहीं छुपा देना,वो क्लास की बेंच पर चुपचाप अपना नाम लिख देना......किसी नाम को आधा लिख कर मिटा देना बाद में मुड़ कर देखने पर ये दिन बहुत याद आते हैं..बडी़ शरारतों वाले दिन...जो अब बिछड़े पलो की याद दिलाते हैं....लेकिन ये यादों के सिवा हकीकत में दुबारा नही आने वाले ,कभी नहीं ... 

पर क्या सबके लिए स्कूल की दुनिया इतनी ही प्यारी होती है...कल तक जो स्कूल के नन्हे मुन्ने बच्चे थे उनमें से कई आगे की चौखट पर कदम रखते हैं....कई छात्रों के कंधे से स्कूली बस्ते का बोझ तो उतर जाता है......पर इनके नाजुक कंधों पर पढ़ाई के साथ साथ घर की जिम्मेदारियों का भार भी आ जाता है। माँ बाप की प्यारी सी दुनिया को पीछे छोड़ कर स्कूल आने वाले कई छात्र नए माहौल और नए दोस्तों को लेकर शुरू शुरू में थोड़े सहमे भी होते हैं..मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ??

उस वर्ष प्रवेश प्रक्रिया के दौरान मुझे कई खट्टे मीठे अनुभव हुए। हर छात्र के पास अपने अनुभवों की लंबी दास्तान है...हाँ यादें ही होगी??जुलाई के दूसरे हफ्ते में मुझे छात्रों (स्कूल बस में सफर करने वाले साथियों से पहचान का होना)का लंबा अवसर मिला.....उसमें सोनू बोस जिनका साल दो हजार अठारह में भारतीय रेलवे में चयन हुआ।और सुरेश जयपुर में बी एस सी नर्सिंग का स्टूडेंट है‍.......जिसने मोहब्बत के असंख्य दरवाज़े खोले...रेत हो या जंगल,चाहे ज़मीन हो या समन्दर सब जगह मोहब्बत से बदलाव हो सकता है ..क्योकि मैं भी ज़िन्दगी के हर रंग को सिर्फ आपकी खुशबू से पहचान पाया।
जब से सामाजिक चेतना जागृत हुई तब से ख्वाब-आने लगे ..आपसे मिलना और लक्ष्य के प्रति समर्पित होना..सपनें जैसे अद्वितीय क्षण प्रदान करने के लिये....माँ सरस्वती विद्यालय का शुक्रगुजार हूँ !
➤❀▬▬ ▬▬❀➤   -©मजीत
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mjaeetkhan3519

Majeet khan

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