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mjaeetkhan3519
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Majeet khan

❤Blessing of parents 🍁Alhamdulillaah for everyone

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Majeet khan

साथी ! पता नहीं चला साथ बरस बीत गए।इन दो सालों में हमने साथ-साथ क्या कुछ नहीं देखा। मै जब अपना के आखिरी पेपर लिख रहा था, तो एक साथ मन को कचोट रहा था. क्या हमारा साथ बस इतना ही था? भीतर से कोई जवाब नहीं ?फिर यकायक बेइंतहा खुशी भी होती है कि क्या शानदार सफर रहा।हमारे साथ व्यतीत किए वक्त से यही पता चला की डिग्री कॉलेज विरोधाभासों की जगह है। एक पल में अकेला कर ,अगले ही क्षण भरपूर लोगों का साथ दे देती है....जिससे कहीं अकेलापन महसूस होता है। मगर आगे चलकर कॉलेज , युनिवर्सिटी वहाँ एक भीड़ मानिंद खड़ा होना और मैं आखिर भीड़ ही समझता हूँ....मगर सब अपने मुस्तक़बिल के लिए और उसी भागमभाग की दौड़ में रहते हैं कोई हमें वक्त नही देता. कोई उदास तो कोई इस भीड़ में छुपकर मुस्कुराता है तो कोई कहता है कि मुझे प्रशासनिक सेवा के लिए एक अच्छा कमरा और लाईब्रेरी ज्वाइन करनी है इस शहर में तो कोई कहता है?मुझे इस साल इसी में ज्वाइन होना है और सब ये प्लानिंग हमने पहले से कभी नहीं की.. इसी वजह से हम आज दो कदम कामयाबी से दूर है ! आहिस्ता-आहिस्ता फिर लौट रहें हैं। अपने आशियान की तरफ फिर वही...जहाँ किताबी पन्नों की तरह पलटती दूनिया के साथ वक्त गुजर जाता है....और  हाँ ! तुमसे बात होती है तो वाकई में दिल में शुकूँ आता है और एक एक उम्मीद की किरण खिलती...वही किमती दोस्त हो ,तुम। 
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मजीत कणीया

©Majeet khan #Nofear
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Majeet khan

#poetryunpluggedShayari
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Majeet khan

प्रिय, 

कल स्कूल में कोविड वैक्सीन कैंम था और मुझे इंटर्नशिप के लिए स्कूल जॉइन करनी थी तब सभी वैक्सीनेशन करवा रहे थे तब मैंने भी सोचा टीका लगवा दे.....लगवा तो दिया मगर हुआ यूँ बुखार, सिरदर्द व नब्ज़ धीमी हुई है, चेहरे से मुस्कुराहट चली गई । मन बहुत ज़ियादा बेचैन हो गया है। हाथ पांव में अजीब सी झनझनाहट है।  इस वक़्त हमारी दोस्ती, तुम्हारी सूरत, अपना  स्कूल मुझे बहुत शिद्दत से याद आ रहा है।

अभी गैलरी में पड़ी तुम्हारी तस्वीर, वॉलपेपर बनकर मुझे देख रही है। बैकग्राउंड में धीमी आवाज़ में श्रेया घोषाल फ़िल्म ज़हर का गीत " अगर तुम मिल जाओ " ज़माना छोड़ देंगे हम "  गा रही हैं। मैंने अपने फ़ोन में तुम्हें ख़त लिखना शुरू कर दिया है। मैं अपनी और तुम्हारी कहानी को दर्ज करने जा रहा हूं।

यूं तो हम दोनों, बचपन से ही एक ही स्कूल में, एक साथ पढ़ते हुए आए थे मगर हमारी या कहूं मेरी ज़िन्दगी में बदलाव तब आया था जब मुझे तुम्हारे साथ बैठने का मौक़ा मिला । ये क्लास 6 -7th की बात थी और फ़ाइनल बोर्ड एग्जाम में कुछ महीनों का वक़्त था और उस वक्त आपने अन्य स्कूल में दाखिला करवा दिया था। तुम क्लास के सबसे शांत मगर सबसे होशियार लड़के थे। हर टीचर तुम्हारी ही तारीफ़ में कसीदे पढ़ता था। मैं भी तुमसे प्रभावित था ... 

बहरहाल मैंने जब तुम्हारे साथ बैठना शुरू किया तो पहले दिन से बदलाव महसूस होने लगा। पढाई मैं अपनी तरफ़ आकर्षित हुआ। हम दोनों की उम्र तकरीबन 14 -15 साल थी, इसलिए ऐसा होना स्वाभाविक भी था। मगर इस दैहिक आकर्षण से बढ़कर, मुझे तुम्हारी सादगी, तुम्हारे निश्छल मन ने प्रभावित किया। जिस समर्पण से तुम अपनी पढ़ाई करते, जिस तरह तुम मुझे भी पढ़ने की सलाह देते, मेरी हर तरह से मदद करते, वह मुझ पर जादू कर रहा था। जादू का असर कुछ ऐसा था कि एक हफ़्ते के भीतर ही मैंने ठीक तुम्हारी तरह क्लासमेट की कॉपी, मोनेटेक्स हाई स्पीड पेन, अप्सरा की पेंसिल, रबर, शार्पनर , मिल्टन की वाटर बॉटल ख़रीद ली थी। वह तो स्कूल में लंच लेकर नहीं आना मैं बचपने की निशानी मानता था, मैं भी लंच तुम्हारी ही तरह घर जाकर ही खाता । 

इस तरह आहिस्ता आहिस्ता प्रेम होता गया। इस वक़्त मुझे एक बहुत प्यारा वाक़िया याद आ रहा है। 

अक्सर सोशल साइंस वाले सर,धीरेन्द्र चौधरी हफ़्ते में एक दिन, पढ़ाने की जगह कहानियां सुनाया करते थे। तुम्हें कहानियां सुनने का बड़ा शौक था। जब सर कहानी सुना देते तो हम सबको हेड डाउन करके बैठने के लिए बोल देते। यह वक़्त होता था हम दोस्तों की किस्सागोई का। मैं और तुम, हमारी सीट के पीछे बैठने वाले दोस्तों के साथ कहानी सुनन का सिलसिला शुरू करते थे। सबसे अज़ीज़ होती थीं पहाड़ में होने वाले " जागर " से जुड़ी कहानियां। सर बड़ी मासूमियत, बहुत चाव और बारीकी से जागर की कहानियां सुनाया करती थे। सर मैम को कहानियां सुनाना शुरू करते तो, उनकी कहानियों में भूत, चुड़ैल की कहानियां ही प्रमुख होती थीं। हम बड़े ध्यान से वह कहानियां सुनती थे। उस एक लम्हे में मुझे महसूस होता था कि इस दुनिया रूपी क्लासरूम में, बचपन था। कसम से यार, बहुत ही अच्छा लगता था।

ख़ैर इस सब में बोर्ड एग्जाम्स आने वाले थे  और हुआ यूँ कि बोर्ड हट चुकी थी मानों एग्जाम आकर गुज़र गए। तुम्हारे साथ बैठने का फ़ायदा यह हुआ था कि मेरी तैयारी अच्छी हो गई थी। जिसका नतीज़ा यह रहा था कि  मेरे नंबर भी ठीक ठाक आ गए थे।

मगर तभी एक बड़ा झटका मेरा इंतज़ार कर रहा था। उम्मीदों के विपरीत तुम यहाँ से दूसरी स्कूल में प्रवेश लेने वाले थे। मुझे तो कुछ दिन समझ नहीं आया कि यह हुआ क्या था लेकिन यह किस्से है,बचपन के जो ताउम्र यादें ताजा करते रहेंगे।
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©Majeet khan
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Majeet khan

प्रिय, 

कल स्कूल में कोविड वैक्सीन कैंम था और मुझे इंटर्नशिप के लिए स्कूल जॉइन करनी थी तब सभी वैक्सीनेशन करवा रहे थे तब मैंने भी सोचा टीका लगवा दे.....लगवा तो दिया मगर हुआ यूँ बुखार, सिरदर्द व नब्ज़ धीमी हुई है, चेहरे से मुस्कुराहट चली गई । मन बहुत ज़ियादा बेचैन हो गया है। हाथ पांव में अजीब सी झनझनाहट है।  इस वक़्त हमारी दोस्ती, तुम्हारी सूरत, अपना  स्कूल मुझे बहुत शिद्दत से याद आ रहा है।

अभी गैलरी में पड़ी तुम्हारी तस्वीर, वॉलपेपर बनकर मुझे देख रही है। बैकग्राउंड में धीमी आवाज़ में श्रेया घोषाल फ़िल्म ज़हर का गीत " अगर तुम मिल जाओ " ज़माना छोड़ देंगे हम "  गा रही हैं। मैंने अपने फ़ोन में तुम्हें ख़त लिखना शुरू कर दिया है। मैं अपनी और तुम्हारी कहानी को दर्ज करने जा रहा हूं।

यूं तो हम दोनों, बचपन से ही एक ही स्कूल में, एक साथ पढ़ते हुए आए थे मगर हमारी या कहूं मेरी ज़िन्दगी में बदलाव तब आया था जब मुझे तुम्हारे साथ बैठने का मौक़ा मिला । ये क्लास 6 -7th की बात थी और फ़ाइनल बोर्ड एग्जाम में कुछ महीनों का वक़्त था और उस वक्त आपने अन्य स्कूल में दाखिला करवा दिया था। तुम क्लास के सबसे शांत मगर सबसे होशियार लड़के थे। हर टीचर तुम्हारी ही तारीफ़ में कसीदे पढ़ता था। मैं भी तुमसे प्रभावित था ... 

बहरहाल मैंने जब तुम्हारे साथ बैठना शुरू किया तो पहले दिन से बदलाव महसूस होने लगा। पढाई मैं अपनी तरफ़ आकर्षित हुआ। हम दोनों की उम्र तकरीबन 14 -15 साल थी, इसलिए ऐसा होना स्वाभाविक भी था। मगर इस दैहिक आकर्षण से बढ़कर, मुझे तुम्हारी सादगी, तुम्हारे निश्छल मन ने प्रभावित किया। जिस समर्पण से तुम अपनी पढ़ाई करते, जिस तरह तुम मुझे भी पढ़ने की सलाह देते, मेरी हर तरह से मदद करते, वह मुझ पर जादू कर रहा था। जादू का असर कुछ ऐसा था कि एक हफ़्ते के भीतर ही मैंने ठीक तुम्हारी तरह क्लासमेट की कॉपी, मोनेटेक्स हाई स्पीड पेन, अप्सरा की पेंसिल, रबर, शार्पनर , मिल्टन की वाटर बॉटल ख़रीद ली थी। वह तो स्कूल में लंच लेकर नहीं आना मैं बचपने की निशानी मानता था, मैं भी लंच तुम्हारी ही तरह घर जाकर ही खाता । 

इस तरह आहिस्ता आहिस्ता प्रेम होता गया। इस वक़्त मुझे एक बहुत प्यारा वाक़िया याद आ रहा है। 

अक्सर सोशल साइंस वाले सर,धीरेन्द्र चौधरी हफ़्ते में एक दिन, पढ़ाने की जगह कहानियां सुनाया करते थे। तुम्हें कहानियां सुनने का बड़ा शौक था। जब सर कहानी सुना देते तो हम सबको हेड डाउन करके बैठने के लिए बोल देते। यह वक़्त होता था हम दोस्तों की किस्सागोई का। मैं और तुम, हमारी सीट के पीछे बैठने वाले दोस्तों के साथ कहानी सुनन का सिलसिला शुरू करते थे। सबसे अज़ीज़ होती थीं पहाड़ में होने वाले " जागर " से जुड़ी कहानियां। सर बड़ी मासूमियत, बहुत चाव और बारीकी से जागर की कहानियां सुनाया करती थे। सर मैम को कहानियां सुनाना शुरू करते तो, उनकी कहानियों में भूत, चुड़ैल की कहानियां ही प्रमुख होती थीं। हम बड़े ध्यान से वह कहानियां सुनती थे। उस एक लम्हे में मुझे महसूस होता था कि इस दुनिया रूपी क्लासरूम में, बचपन था। कसम से यार, बहुत ही अच्छा लगता था।

ख़ैर इस सब में बोर्ड एग्जाम्स आने वाले थे  और हुआ यूँ कि बोर्ड हट चुकी थी मानों एग्जाम आकर गुज़र गए। तुम्हारे साथ बैठने का फ़ायदा यह हुआ था कि मेरी तैयारी अच्छी हो गई थी। जिसका नतीज़ा यह रहा था कि  मेरे नंबर भी ठीक ठाक आ गए थे।

मगर तभी एक बड़ा झटका मेरा इंतज़ार कर रहा था। उम्मीदों के विपरीत तुम यहाँ से दूसरी स्कूल में प्रवेश लेने वाले थे। मुझे तो कुछ दिन समझ नहीं आया कि यह हुआ क्या था लेकिन यह किस्से है,बचपन के जो ताउम्र यादें ताजा करते रहेंगे।
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©Majeet khan #touch
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Majeet khan

मैं एक पुतला हूँ,मिट्टी का मुझे यहीं खाक होना है। 
इसी मिट्टी की महक में दफन होना है।
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•©मजीत कणीया

©Majeet khan #मुल्क #देश #वत्तन!

#stairs
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Majeet khan

सुखद स्मृतियों के साथ स्कूल में बिते पल की लम्बी दास्ताँ..
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बचपन ,स्कूल ,गाँव मुझे बहुत शिद्दत से याद आ रहा है...रौनकें दिन-ब-दिन गायब होती रही हैं...पर मुझे याद रह गये ये दिन और स्कूल के दिनों की लंबी दास्ताँ.....

स्कूल में बीता हर क्षण वैसे ही मेरी आँखो के सामने है.. जैसे एक शॉर्ट फिल्म)। वो दिन कुछ यूँ छूट रहे थे यह गाँव दोस्त और सच्चे गुरु जी ... फिर मैं खुद को कोसते हुयें एक बार स्कूल घूमना चाहता हूँ ....उन्हीं ख्वाबों में जीना चाहता हूँ! 

जहाँ ऊंची दीवारों के अलावा मुझे कोई न पहचानता होगा शायद...झुलसाती,आग बरसाती गर्मियों के बाद प्यासी धरती को जीवन से सराबोर करने आता है सावन ...लू के थपेड़ों के बाद..मंद मंद बसंती बहार का आना....! 

प्रकृति का दुलार पाकर झूलने लगतीं हैं नीम की शाखें और उन दरख़्तों पर निबोरी,सांगरी और पिंलू के गुच्छे तैरने लगते है हवा में भीगी कोपलों की खुशबू .... 

बारिश की बूंदें बिखेर देती है फिजा में मिट्टी की सौंधी सौंधी सुगंध ....उन दिनों में धरती सुंदर एक दुल्हन की तरह सजी हुई होती..देखो अजीब कुदरती श्रृंगार....बरसात के दिनों अपने गाँव में लहलहाती फसले हरे खेत,मैदान,चरागाह और सूरज छिप जाने पर आता गायों का झुंड....मौसम की अंगड़ाई के साथ कहीं रुखसत होती हैं ..खूंम्भी तो कहीं जमीन से फूट पड़ता है....नन्हा अंकुर।

आंखों में उम्मीद की चमक और चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए आने लगते हैं स्कूलों में हजारों छात्र और फिर शुरू होता है...सिलसिला एडमिशन और हॉस्टल के लिए भागदौड़ का... जून और जुलाई के महीने में नोटिस बोर्ड के सामने उमड़ने लगती है नए-नए छात्रों की भीड़। फिर अगस्त से धीरे-धीरे शुरू होता है सिलेबस और नोट्स ज़ेरॉक्स करवाने का सिलसिला......विद्यालय दुनिया की सबसे प्यारी जगहों में से एक थी मेरे लिए ..... एक जन्नत! 

वो नई पुरानी किताबों के सफेद पीले रंगीन पन्नों के बीच की खुश्बू को महसूस करना। किसी किताब को कमरे में ही दरी के नीचे कहीं छुपा देना,वो क्लास की बेंच पर चुपचाप अपना नाम लिख देना......किसी नाम को आधा लिख कर मिटा देना बाद में मुड़ कर देखने पर ये दिन बहुत याद आते हैं..बडी़ शरारतों वाले दिन...जो अब बिछड़े पलो की याद दिलाते हैं....लेकिन ये यादों के सिवा हकीकत में दुबारा नही आने वाले ,कभी नहीं ... 

पर क्या सबके लिए स्कूल की दुनिया इतनी ही प्यारी होती है...कल तक जो स्कूल के नन्हे मुन्ने बच्चे थे उनमें से कई आगे की चौखट पर कदम रखते हैं....कई छात्रों के कंधे से स्कूली बस्ते का बोझ तो उतर जाता है......पर इनके नाजुक कंधों पर पढ़ाई के साथ साथ घर की जिम्मेदारियों का भार भी आ जाता है। माँ बाप की प्यारी सी दुनिया को पीछे छोड़ कर स्कूल आने वाले कई छात्र नए माहौल और नए दोस्तों को लेकर शुरू शुरू में थोड़े सहमे भी होते हैं..मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ??

उस वर्ष प्रवेश प्रक्रिया के दौरान मुझे कई खट्टे मीठे अनुभव हुए। हर छात्र के पास अपने अनुभवों की लंबी दास्तान है...हाँ यादें ही होगी??जुलाई के दूसरे हफ्ते में मुझे छात्रों (स्कूल बस में सफर करने वाले साथियों से पहचान का होना)का लंबा अवसर मिला.....उसमें सोनू बोस जिनका साल दो हजार अठारह में भारतीय रेलवे में चयन हुआ।और सुरेश जयपुर में बी एस सी नर्सिंग का स्टूडेंट है‍.......जिसने मोहब्बत के असंख्य दरवाज़े खोले...रेत हो या जंगल,चाहे ज़मीन हो या समन्दर सब जगह मोहब्बत से बदलाव हो सकता है ..क्योकि मैं भी ज़िन्दगी के हर रंग को सिर्फ आपकी खुशबू से पहचान पाया।
जब से सामाजिक चेतना जागृत हुई तब से ख्वाब-आने लगे ..आपसे मिलना और लक्ष्य के प्रति समर्पित होना..सपनें जैसे अद्वितीय क्षण प्रदान करने के लिये....माँ सरस्वती विद्यालय का शुक्रगुजार हूँ !
➤❀▬▬ ▬▬❀➤   -©मजीत
  #school story
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Majeet khan

ये सर्द हवाएं और उनकी बेहिसाब बातें..
मुस्कुरा कर गुजर ही जाएगी ये हसीन रातें...
~मजीत खांन कणीया #night
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Majeet khan

स्कूल टूरिज्म..!!
वो मुहब्बतें..और सफर राजधानी जयपुर का।
सपने की सफलता को हकीकत में बदलने के लिए...हाथों में थमे हाथ का समर्थन!
खुब रहें वो दिन चर्चाओं में स्कुल छूटने के बाद तुम्हें याद करता रहूँगा।

हाँ! याद करते रहना सदा.. (मुहब्बत का एहसास)

यह कहते कहते मुहब्बतें आबाद और गहरी होती गई। वो दिन याद आते होंगे या नहीं,
शायद !
बचपना मुहब्बत वाली
यादे सहपाठी/दोस्ताना वाली ...
       भुला नहीं वो..
दिन भैया तुम्हारे पास बैठना.. खटारा-सी पुरानी स्कूल बस में....और वो सफर।
खूब बातें करना,
खचाखच भरी बस में सीट नहीं मिलने पर तुम्हारें पास आकर खडा़ होना..बेइंतेहा इश्क़ ही तो था।एक बार तू भी रौनकें ए-सफर जयपुर करना मेरे यार...फिर तो अजमेर में ख्वाजा जी के भी जायेंगे मैं भी जा रहा हूँ,तू चलना। 
'हाँ विचार तो हैं फिर क्या होता है' 
देखेंगे..
मेरा गुलाबी नगरी में प्रवेश कर जाना...सफर राजधानी की खूबसुरती को निहारना..आमेर,नाहरगढ़,जयगढ़ मुबारक महल,बिड़ला मंदिर,चिड़ियाघर मोती डूंगरी...वो दृश्य आज भी बाकायदा जिंदा है..क्लिक और वो नजारे आज भी आखों के सामने!

पहली दफा जयपुर!

आऊंगा यारा फिर लौट के..उस सफर को।सपनों की मुलाकात को लेकर जो तुमनें हमेशा के लिए यादगार बना दिया...सपनों को साकार करने में लगे रहना।मैं भी इंसान बनने का फिक्रमंद हूँ।

खैर!
आप वो फूल है बगियाँ के
सदा महकतें रहना...😊❤
    -मजीत खांन
      "कणीया" #oldmemories_school_tour
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Majeet khan

गाँव सी धूप शहरो को
मय्यसर हो नही पाती ..!
जो जल्दी उठती नही थी,
वो आंखे बंद होकर
अब सो नही पाती...!!
©Majeet Khan Kaneeya

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Majeet khan

छुप जाओ शर्म की चादर में,बाहर हैवानियत  की हद पार हो रही है,कही तुम्हे दाग ना लग जाए..
            -Majeet Khan Kaneeya

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